बच्चे नखरीले होते हैं और थोड़े जिद्दी. वे खानेपीने को ले कर बहुत चूजी होते हैं. उन के ‘यह नहीं खाऊंगा, वह नहीं खाऊंगी’, शब्दों से मम्मी परेशान रहती हैं. रोजमर्रा की दाल, रोटी, चावल, सब्जी देख कर वे चिढ़ जाते हैं. नूडल्स, फास्टफूड, चटपटी चीजें उन्हें भाती हैं. ऐसा खाना स्वादिष्ठ हो सकता है पर सेहतमंद नहीं.  कई बार हम और आप बच्चों को इसलिए भी ऐसा खाना खाने से नहीं रोक पाते कि आखिर वे क्या खाएंगे, हर चीज तो उन्हें नापसंद ही होती है. यह भी होता है कि आप कितने ही चाव से कोई रैसिपी तैयार करती हैं और वे एक सिरे से उन्हें नकार देते हैं. यह स्थिति तो और भी खराब होती है. समझ में नहीं आता कि उन्हें क्या और कैसे खिलाएं.

क्या आप को पता है कि जानेअनजाने बच्चों के खाने की आदत हम स्वयं बिगाड़ देते हैं. एक शोध से यह बात सामने आई है कि बच्चों की स्वाद ग्रंथि बाद में विकसित होती है. जन्म के कुछ महीने तक उन्हें स्वाद के बारे में कुछ पता नहीं होता. उन्हें जो भी खिलायापिलाया जाता है, वे ग्रहण कर लेते हैं. यानी हमें शुरू से ही बच्चों को स्वादिष्ठ भोजन के बजाय सेहतमंद और पौष्टिक खाना खाने की आदत डलवानी चाहिए. ऐसा करने से वे बड़े हो कर खाना खाने में नखरे नहीं दिखाएंगे. सो, उन्हें स्वादिष्ठ नहीं, सेहतमंद आहार दें.

डाक्टर कहते हैं कि शिशु को जब ठोस आहार देना शुरू करें, उन्हें संपूर्ण पौष्टिक आहार दें, जैसे दलिया, दाल का पानी, उबली सब्जी, खिचड़ी आदि. हम शिशु को पौष्टिक आहार देना शुरू करते भी हैं लेकिन होता ऐसा है कि जल्दी ही शिशु इन आहारों के बजाय घर के अन्य सदस्यों के लिए बना भोजन पसंद करने लगते हैं. हम भी खुश हो कर उन्हें वही खाना खिलाने लगते हैं. यहीं से शिशु चूजी होना शुरू होते हैं. वे सिर्फ वही खाना चाहते हैं जो उन्हें स्वादिष्ठ लगता है.

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