तान्या की शादी तय हो गई थी और उस की विवाहित सहेलियां जबतब उसे छेड़ती रहती थीं. कभी सुहागरात की बात को ले कर, तो कभी पति के साथ हनीमून पर जाने की बात को ले कर. उन की बातें सुन कर अगर एक तरफ तान्या के शरीर में सिहरन दौड़ जाती, तो दूसरी ओर वह यह सोच कर सिहर जाती कि आखिर कैसे वह सैक्स संबंधों का मजा खुल कर ले पाएगी? उसे तो सोचसोच कर ही शर्म आने लगती थी. आज तक वह यही सुनती आई थी कि सैक्स संबंधों के बारे में न तो खुल कर बात करनी चाहिए, न ही उसे ले कर उत्सुकता दिखानी चाहिए. पति के सामने शर्म का एक परदा पड़ा रहना आवश्यक है. नहीं तो पता नहीं वह क्या सोचे. दूसरी ओर उसे यह डर भी सता रहा था कि कहीं उस के पति को उस की देहयष्टि में कोई कमी तो महसूस नहीं होगी? कितनी बार तो वह शीशे के सामने जा कर खड़ी हो जाती और हर कोण से अपने शरीर का मुआयना करती. पता नहीं, उस की फिगर ठीक है भी कि नहीं. कभी वह शरीर के गठन को ले कर कौंशस हो जाती, तो कभी यह सोच कर परेशान हो उठती कि पता नहीं वह अपने पति के साथ मधुर संबंध बना भी पाएगी या नहीं.

कहां से उपजती है शर्म

तान्या जैसी अनेक लड़कियां हैं, जो सैक्स को शर्म के साथ जोड़ कर देखती हैं, जिस की वजह से इस सहजस्वाभाविक प्रक्रिया व आवश्यकता को ले कर कई बार उन के मन में कुंठा भी पैदा हो जाती है. सैक्स के प्रति शर्म की भावना हमारे भीतर से नहीं वरन हमारे परिवेश से उत्पन्न होती है. यह हमारे परिवारों से आती है, हमारी सांस्कृतिक व धार्मिक परंपराओं से आती है, फिर हमारे मित्रों व हमारे समुदाय से हम तक पहुंचती है. आगे चल कर हम एक तरफ तो उन चित्रों और संदेशों को देख कर यह सीखते हैं जो हैं कि सैक्स एक सुखद एहसास है और जीवन में खुश रहने के लिए सफल सैक्स जीवन एक अनिवार्यता है तो दूसरी ओर उन संदेशों के माध्यम से सैक्स को शर्म से जोड़ कर देखते हैं, जो बताते हैं कि सैक्स संबंध बनाना गलत व एक तरह का पाप है. समाजशास्त्री कल्पना पारेख मानती हैं कि ज्यादातर ऐसा उन स्थितियों में होता है, जब लड़कियां यौन शोषण का शिकार होती हैं. सैक्स से संबंधित कोई भी मनोवैज्ञानिक, शारीरिक या भावनात्मक शोषण उस के प्रति अनासक्ति तो पैदा कर ही देता है, साथ ही अनेक वर्जनाएं भी लगा देता है.

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