पूरी तरह आतंक की गिरफ्त में आ चुकी कश्मीर घाटी में आतंकी गतिविधियों के चलते हालात कतई ऐसे नहीं हैं कि कोई सामान्य पर्यटक भी वहां जाए. लेकिन 29 जून से 7 अगस्त तक होने वाली अमरनाथ यात्रा में देशभर से लगभग 7 लाख श्रद्धालुओं के अमरनाथ पहुंचने के अनुमान ने जता दिया है कि धर्मांधता इन दिनों सिर चढ़ कर बोल रही है.

क्यों लाखों लोग धर्म के नाम पर मौत के मुंह में जानबूझ कर जा रहे हैं, इस सवाल का जवाब अब बेहद साफ है कि अमरनाथ यात्रा का उद्देश्य अब कुछकुछ बदल रहा है. कहने को तो यह कहा जाता है यहां शिव ने अपनी पत्नी पार्वती को अमरत्व का रहस्य बताया था लेकिन

अब यहां मरण की आशंका ज्यादा है. अधिकांश श्रद्धालु अब चमत्कारिक किस्सेकहानियों के फेर में पड़ कर ही नहीं, बल्कि मुसलिम आतंकवादियों को यह बतानेजताने भी जा रहे हैं कि हिंदू किसी गोलाबारूद या मौत से नहीं डरता. कश्यप ऋषि की तपोस्थली कश्मीर घाटी हमारी है, बर्फानी बाबा का पुण्य कोई हम से छीन नहीं सकता.

आस्था और कट्टरवाद में फर्क कर पाना हमेशा से ही मुश्किल काम रहा है. अमरनाथ यात्रा के मामले में तो हालत बेहद चिंताजनक और हास्यास्पद हो गई है कि देशभर में एक करंट सा फैल रहा है कि जितनी ज्यादा से ज्यादा संख्या में श्रद्धालु अमरनाथ पहुंचेंगे, उतनी ही तादाद में पुण्य मिलेगा और हिंदुओं की ताकत दिखेगी.

आस्था का करंट फैला कर पैसा बनाने वाले लोग खुश हैं कि इस साल कारोबार अच्छा चलेगा. पिछले साल कश्मीर के कुख्यात आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में बारबार कर्फ्यू लगा था,

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