पहले बच्चे का जन्म होने पर उस के जन्म समय, तिथि, दिन, स्थान के आधार पर उस की कुंडली पंडितों द्वारा तैयार करवा ली जाती थी. कुंडली तैयार होने के बाद ही इस बात का पता चलता था कि जन्म लेने वाला बालक मंगली है या नहीं. जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है या नहीं. और उस के जन्म के समय कौनकौन से ग्रहनक्षत्र शुभ थे और कौन से अशुभ. कुंडली के आधार पर ही उस के पूरे भविष्य की गणना कर ली जाती थी.

कुंडली के अनुसार जन्म लेने वाले बच्चे का यदि कोई ग्रह खराब होता था या वह मंगली होता था तो उन ग्रहनक्षत्रों की शांति के लिए पंडितों द्वारा सुझाए गए नियमों का पालन अभिभावकों व बच्चों को करना पड़ता था. उस पर उन लोगों का कोई जोर नहीं होता था.

तेजी से बढ़ रहा है चलन

आज बच्चे के जन्म से पहले ही उस के मातापिता पंडितों और ज्योतिषियों से सलाहमशविरा कर के उन्हें प्रसव का समय बता कर उन से उत्तम शुभ मुहूर्त निकलवा लेते हैं और औपरेशन द्वारा डिलीवरी उसी समय पर करवाने का प्रयास करते हैं. मैडिकल टर्म में ‘प्रोग्राम डिलीवरी’ के नाम से मशहूर यह प्रचलन दिनबदिन बढ़ता ही जा रहा है. कुछ चिकित्सक इसे ‘एस्ट्रो चाइल्ड’ नाम देते हैं.

कमोबेश भारत के प्रत्येक महानगर एवं मेट्रो शहरों में शुभ मुहूर्त में बच्चों का जन्म कराने का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. अंधविश्वासी लोगों का मानना है कि पहले से जानकारी कर के शुभ मुहूर्त के अनुसार पैदा कराए गए बच्चे का भविष्य उज्ज्वल होता है.

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