अपने गब्बर सिंह टैक्स को सही साबित करने के लिए सरकार ने हाल ही में एक सर्वे करा कर कहा है कि जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) के कारण एक औसत घर को क्व 8,400 सालाना की बचत हुई है. सरकार का कहना है कि पहले फैक्ट्री के गेट पर ऐक्साइज टैक्स लगता था, फिर रास्ते में औक्ट्रौय लगता था और आखिर में कई बार वैट यानी सेल्स टैक्स लगता था. जीएसटी में सब टैक्स हट गए हैं और सिर्फ एक टैक्स रह गया है.

सरकार यह नहीं बताती कि जीएसटी आखिरी दाम पर लगता है जिस में बिचौलियों का मुनाफा शामिल है, जिस का मतलब है कि मुनाफे पर भी टैक्स अब उपभोक्ता दे रहा है. यही नहीं, सरकार यह भी नहीं बता रही कि पहले टैक्स देना आसान था और उस के लिए कंप्यूटर ऐक्सपर्ट को दफ्तरों या दुकानों में बैठना जरूरी नहीं था.

सरकार की आंकड़ेबाजी तो पूर्व सीएजी विनोद राय की तरह की है, जिन्होंने 2014 से पहले कोल, टैलीकौम व कौमनवैल्थ स्कैमों में लाखोंकरोड़ों का घपला दिखा दिया था. अब भारतीय जनता पार्टी के सांसद बने विनोद राय ने आज तक नहीं बताया कि नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली उस महान राशि में से कितना पिछले 5 साल में वसूल कर पाए हैं? आंकड़ेबाजी और बकबक करने में माहिर सरकार को यह चिंता नहीं कि आम घरवालियों को जीएसटी की वजह से किस तरह हर दुकान पर कंप्यूटरों का सामना करना पड़ रहा है और टैक्सों के साथसाथ कंप्यूटरों का खर्च भी सामान के खर्च में जोड़ा जा रहा है.

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