मुंबई एक बार फिर पानीपानी हो या. 2 दिन की भारी बारिश ने सारे मुंबई को ठप कर दिया. सड़कें नाले बन गईं, बाग तालाब बन गए, निचली मंजिलों और बेसमैंटों में पानी के इनडोर स्विमिंग पूल बन गए. मजेदार बात यह है कि ऊपर से साफ शुद्ध पानी बरस रहा था पर नीचे बदबूदार, कसैला, मैला, कूड़ा व मिट्टी भरा सैलाब था. सरकार हाथ पर हाथ धरे बैठी रही और टैलीविजन चैनल चीखतेचिल्लाते रहे. मुंबई हो या बिहार, प्राकृतिक आपदाओं के सामने हम हाथ झाड़ लेते हैं, क्योंकि ज्यादातर मामलों में मालूम होता है कि जानमाल के नुकसान के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं. मुंबई की बाढ़, पानी भराव, गंदगी के लिए हर नागरिक जिम्मेदार है, क्योंकि हर कोई यही सोचता है कि शहर को साफसुथरा रखने की जिम्मेदारी उस की नहीं किसी और की है. शहर को साफ रखने में किसी नेता की दिलचस्पी है ही नहीं, क्योंकि इस देश में सफाई इंचार्ज को दलित, अछूत, नीचा, गंदा माना जाता है. लोग हुक्म देना तो जानते हैं पर टोकरे उठाने में हाथ लगाने को तैयार नहीं होते. नरेंद्र मोदी की तरह साफ नई झाड़ू ले कर 10 फुट कूड़ा इधर से उधर कर देना और तसवीरें खिंचवाना सफाई नहीं होती.

मुंबई में हर कोई लगा है इसे गंदा बनाने में. लोग कूड़ा नालियों में डालते हैं. प्लास्टिक हर जगह फैला है. हर जगह पेशाबपाखाने के लिए बनी है. पटरियों पर, नालियों पर घर बने हैं. लोग सामान बाहर रखना हक समझते हैं. दुकानों ने सारी व्यवस्था बिगाड़ रखी है. कुछ इलाकों को छोड़ दें तो घरों की औरतों ने ही मुंबई महानगर की शक्ल बिगाड़ रखी है. हर घर के बरामदे में मैलेकुचैले कपड़े आड़ेतिरछे सूखते नजर आएंगे. बालकनी में कबाड़ भरा होगा. एयरकंडीशनरों का पानी टपटप कर रहा होगा. पाइप लीक कर रहे होंगे. गुरखे वाली सोसाइटी का दरवाजा भी टूटा होगा. किसी को चिंता नहीं. ऐसी मुंबई बारिश से तहसनहस कैसे नहीं होगी? सब सोचते हैं कि दूसरे इसे ठीक करें. हम राजारानियों की तरह मौज करें. ऐसा कैसे हो सकता है? वह शहर जहां हर दूसरे दिन सौंदर्य प्रतियोगिता होती हो, वहां गली को सुंदर बनाने के लिए कोई सिर पर कपड़ा बांध कर उतरने को तैयार नहीं. जो शरीर को सुंदर बनाने के लिए बाग या चौपाटी पर दौड़ लगाता है, वह सप्ताह में एक रोज भी सफाई करने को तैयार नहीं.

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