सड़कों पर आजकल अकसर लिखा दिखता है, ‘संभल के, घर पर कोई इंतजार कर रहा है.’ मगर घर में जो इंतजार कर रहे होते हैं उन में सब से ज्यादा दुखदर्द भारत में ही झेला जाता है. भारत में हर साल साढ़े 11 लाख लंबी सड़कों पर कोई डेढ़ लाख लोग मारे जाते हैं, गोलियों से नहीं, ट्रकों, गाडि़यों से. भारत का नाम दुनिया में सड़कों पर मारे जाने वालों में से सब से ऊपर है.

ठीक है, देश बड़ा है. यहां 47 लाख मील लंबी सड़कें हैं और 12 करोड़ वाहन हैं. पर अमेरिका में, जो हम से ढाई गुना बड़ा है, 65 लाख मील लंबी सड़कों और 25 करोड़ वाहनों से 33 हजार लोग मरते हैं. और चीन की 41 लाख मील लंबी सड़कों पर 20 करोड़ वाहनों से 70 हजार. 2 गुने परिवारों को रोताबिलखता छोड़ने और लगभग 1 लाख औरतों को बिना वजह विधवा बनाने के लिए दोषी देश की सरकार और समाज दोनों हैं.

सड़कों पर दुर्घटनाओं का अकसर कारण खराब सड़कें, खराब वाहन तो होते ही हैं, खराब तरीके से चलाना और खासतौर पर शराब पी कर चलाना होता है. यह वह मौत है, जो शरीर की गलतियों से नहीं केवल और केवल आदमी की गलती से हुई होती है. यह वह मौत होती है, जो टाली जा सकती है पर किसी की लापरवाही के कारण होती है और उस का जिम्मेदार हर वह जना होता है जो स्टेयरिंग या हैंडल थामे होता है.

इस मौत का दर्द सब से ज्यादा होता है, क्योंकि यह अचानक होती है और महीनों यह दुख रहता है कि अगर यह न होता, वह न होता तो मौत न होती. इस मौत को, अफसोस कि देश की सरकार व शासन दोनों बड़े निश्चिंत भाव से लेते हैं. मानो यह तो लिखा हुआ ही है कि मौत कब आने वाली है, तो हम क्यों भगवान और भाग्य में अपना दखल दें?

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