सासबहू धारावाहिकों में औरतों के ये वाक्य अकसर सुनने को मिल जाएंगे- ‘मैं तो सच कहती हूं’, ‘अजी सांच को आंच कहां’, ‘मेरी बात बुरी लगे पर है तो सच न’, ‘मैं तो कभी किसी की बुराई करती ही नहीं’, ‘कसम दिला जो अगर मैं ने किसी को बुरा कहा पर...’ यानी कहने वाली गलत हो ही नहीं सकती. स्मृति ईरानी इस तरह के वाक्य एकता कपूर के सैटों से शास्त्री भवन तक ले आई हैं जहां वे केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री हैं और कक्षा 12वीं पास के अपने तमगे को छिपाने के लिए आईआईटीयों और आईआईएमों पर सासों की तरह युवा, शिक्षित, तेज, स्मार्ट बहुओं पर अपनी श्रेष्ठता साबित करने में लगी रहती हैं.

ताजा विवाद आईआईटी मद्रास का है, जहां के कुछ छात्रों ने अंबेडकर पैरीयर स्टडी ग्रुप बना कर मोदी सरकार के भगवाईकरण पर टीकाटिप्पणी कर डाली थी. किसी भक्त की शिकायत पर स्मृति ईरानी ने सास की तरह फरमान सुना दिया कि बहू इस घर के कायदेकानून से चलो. हंगामा होते ही स्मृति ईरानी ने बहू वाला पैतरा अपना लिया. ‘मैं तो सीधी बात करने वाली हूं’, ‘मैं तो सिस्टम बदलना चाहती हूं’, ‘दूसरे अपना लाभ इस हंगामे में ढूंढ़ रहे हैं’, ‘मैं तो खाना... माफ कीजिए... किताबें औनलाइन करा रही हूं ताकि सब को मिल सकें’ (और उस बहाने हरदम चैटिंग करते रहें या पौर्न देखते रहें), ‘मैं तो ओछी बातों से ऊपर वाली हूं’ जैसे वाक्य मामले की सफाई देने के लिए निकल पड़े मानों धारावाही से उठाए गए हों.

मामला गंभीर इसलिए है कि शिक्षा मंत्रालय को गुमनाम पत्र पर कोई काररवाई करने का हक था ही नहीं. क्या शिक्षा मंत्रालय हर गुमनाम पत्र पर इस तरह की काररवाई करता है? तब तो हर प्रिंसिपल, हर विश्वविद्यालय, हर कालेज, हर स्कूल हर रोज बीसियों चिट्ठियां स्मृति ईरानी से पा लेगा. यह मामला शिक्षा मंत्रालय ने उठाया ही इसलिए कि अंबेडकर पैरीयर स्टडी सर्कल ने नरेंद्र मोदी को निशाना बनाया था और स्मृति ईरानी के लिए कोई भी स्मृति, कोई भी देवता, कोई भी भगवा ग्रंथ, कोई भी भाजपाई नेता गलत नहीं हो सकता. नरेंद्र मोदी की आलोचना उन संस्थानों में हो जो सरकारी पैसे पर पल रहे हों, यह कैसे पचाया जा सकता है.

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