13 वर्षीय सान्या बहुत चटोरी है, उसे अपने खानेपीने पर जरा भी कंट्रोल नहीं है. सुबह उठते ही उसे चिप्स, फ्रैंच फ्राइज, चौकलेट्स और कोल्डडिं्रक चाहिए. जहां उस की क्लास के और बच्चे घर से लंच ले कर आते हैं. वहीं वह लंच टाइम में स्कूल कैंटीन में पहुंच जाती है, क्योंकि उसे घर का सादा खाना बिलकुल नहीं भाता. उसे रोज कुछ नया, चटपटा और फ्राइड चाहिए. अपनी इसी चाहत की खातिर वह अपने जेबखर्च का एक बड़ा हिस्सा अपने खानेपीने पर खर्च कर देती है.

खाने की शौकीन और जबान की चटोरी सान्या जैसे किशोर खाने के लिए कभी ना नहीं कहते और उन की यही ओवरईटिंग और चटोरी जबान उन्हें मोटापे की ओर ले जाती है, जिस के चलते उन्हें कई दूसरी स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है. नतीजतन, वे अस्वस्थ रहने लगते हैं और उन्हें दवा और वजन कम करने के लिए जिम पर भी पैसे खर्च करने पड़ते हैं, जिस से चटोरी जबान जेब पर और भी भारी पड़ती है.

ऐसी चटोरी जबान वालों को पता होता है कि शहर के किस रैस्टोरैंट में कौन सी चीज अच्छी मिलती है. कहां सभी वैराइटी के पकौड़े, मटरकुलचे या इटालियन फूड मिलता है. गरमागरम जलेबियां किस वक्त मिलती हैं और किस गली में कितने नंबर की दुकान पर खस्ता गोलगप्पे व चाट मिलती है. परांठे वाली गली में कब, कितने बजे आलू का, कब गोभी का परांठा बनता है और उस के साथ कौन सी चटनी या कौन सा अचार मिलता है?

अपनी चटोरी जबान के कारण ऐसे किशोर पूरे शहर की खाक छानने को भी तैयार रहते हैं. उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि फलांफलां ईटिंग पौइंट घर से कितना दूर है, वहां जाने में कितने पैसे खर्च होंगे, उन्हें तो बस वह डिश खा कर अपनी चटोरी जबान को तृप्त करना होता है, फिर चाहे उन्हें इस का खमियाजा किसी भी रूप में क्यों न भुगतना पड़े.

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