किसानी ऐसा व्यवसाय है जिस में मुश्किलें तो बिन बुलाए मेहमान की तरह आती ही रहती हैं. कभी बारिश ज्यादा होती है तो बाढ़ आ जाती है, नहीं तो कभी सूखा पड़ता है, कभी और कोई प्राकृतिक आपदा. सरकार के लिए इतने बड़े पैमाने पर किसानों के नुकसान की भरपाई कर पाना मुश्किल होता है. इस का एक उपाय है कि कृषि बीमा की व्यापक व्यवस्था हो ताकि किसान के नुकसान की भरपाई की जा सके.

सरकारें इस दिशा में काम कर भी रही हैं. मगर ज्यादातर किसानों को तो बीमा का नाम तक पता नहीं है. इसलिए सरकारी सब्सिडी से बीमा योजना चल रही है. इस से किसानों को लाभ हुआ भी है मगर रोना यह है कि इस बीमा योजना से जितना लाभ किसानों को मिल रहा है उस से ज्यादा लाभ बीमा कंपनियों को हो रहा है. असल में, वे मालामाल हो रही हैं. हाल ही में एक के बाद एक आए सर्वेक्षणों और रपटों से यही नतीजा निकलता है. क्या किसानों के नाम पर सरकार, बीमा कंपनियों पर मेहरबान है?

मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना के 1 साल पूरा होने पर एक बात उभर कर आती है कि सूखे और बाढ़ के इस दौर में किसान को लाभ मिलने से ज्यादा बीमा उद्योग मालामाल हो रहा है.

एक अखबार द्वारा सूचना अधिकार के तहत एग्रीकल्चरल इंश्योरैंस कंपनी औफ इंडिया से प्राप्त जानकारी के मुताबिक, इस योजना के तहत 2017 में 22,437 करोड़ रुपए कुल बीमा प्रीमियम जमा हुआ जबकि किसानों ने 8,087 करोड़ रुपए के दावे किए. नवीनतम जानकारी के अनुसार, किसानों ने 15,000 करोड़ रुपए के दावे किए जिन में से बीमा कंपनियों ने 9,466 करोड़ रुपए के ही दावे मंजूर किए हैं. सरकार इस बीमा को 98 प्रतिशत सब्सिडाइज्ड करती है. यह प्रीमियम बीमा कंपनियों के पास ही रहता है.

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