एक सेमी बैंकिंग कंपनी ने टैलीविजन विज्ञापन जारी किए हैं जिन में मुख्य किरदार बारिश में या तो पैदल चल कर काम पर निकलता है या पैसा बचाने के लिए औटो की जगह बस लेता है. कंपनी का दावा है कि ऐसे ही लोगों को कंपनी आसानी से कर्ज देती है.

इस में शक नहीं है कि असली सुख बचत में है. कम खर्चों में है. ज्यादातर विज्ञापनबाजी कहती है कि सुख पाने के लिए खर्च करो, ज्यादा खर्च करो जबकि विज्ञापनों का असल उद्देश्य है सही दाम पर अच्छा सामान दिलवाना और ग्राहकों को उन की चौइस देना. आजकल होड़ लगी है कि लोग खरीदें, ज्यादा खरीदें पर यह कोई नहीं बता रहा कि पैसा बचाइए ताकि कल सुरक्षित रहे.

ऐसा नहीं कि पैसा बचाने के चक्कर में कंजूस मक्खीचूस बन जाएं. इस से और ज्यादा नुकसान होता है. जीवन स्तर खराब हो जाता है. सही जगह खर्च करने में भी हिचक होने लगती है. पढ़नेलिखने तक में पैसा खर्च करना बंद कर दिया जाता है. बचत के नाम पर दूसरों का पैसा हड़पना शुरू कर दिया जाता है और घर वालों पर एक उदासी छा जाती है.

पर दूसरी तरफ जो दोपहर में 2 टोस्ट सेंक कर खाने की कोशिश कर रहा हो, उसे बाजार का महंगा सैंडविच डिलीवर करा करपत्नी दफ्तर में काम कर के भी पैसा बचाने वाली बात नहीं कर रही, बरबादी की बात कर रही है, जो अनावश्यक है और जिस का विरोध होना चाहिए. मौजमस्ती के लिए 500 भी खर्च करें पर जहां 5 में काम चल सकता हो वहां 50 याक्व500 खर्च कराना ऐश करना नहीं मूर्खता है.

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