बात मेरी सहेली की शादी की है. जब उस की शादी तय हुई तब वह बीडीएस कर रही थी. उस का कालेज टाइम 8 से 4 बजे का था. रिश्ता अच्छा मिल जाने के कारण उस के घर वालों ने तुरंत शादी करने का निर्णय लिया. पढ़ाई के बीच में ही शादी की डेट निकल आई. शादी के बाद ससुराल में रसोई छुआई की रस्म हुई, तो घर के सभी लोगों ने उसे कोई न कोई उपहार दिया.

सहेली के पति यह देख कर बोले, ‘‘मैं तो इस रस्म के हिसाब से तुम्हारे लिए कुछ नहीं लाया हूं. बोलो तुम्हें क्या गिफ्ट चाहिए?’’

‘‘3 दिन बाद मुझे फिर कालेज जाना है. अत: मुझे नई यूनीफौर्म, पानी की बोतल, टिफिन बौक्स व फ्लोटर चाहिए. साथ में यदि नया बैग भी मिल जाए तो और अच्छा,’’ सहेली बोली.

सहेली की बात सुन कर उस के पति बोले, ‘‘मुझे तुम्हारी बातों से ऐसा लग रहा है कि ये सारी चीजें मुझे अपनी पत्नी के लिए नहीं, बल्कि पहली बार स्कूल जाने वाली बच्ची के लिए खरीदनी हैं.’’ उन की बात सुन कर सभी जोरजोर से हंसने लगे. यह घटना हम सब के लिए यादगार बन गई.

-ज्योत्सना अग्रवाल

सर्वश्रेष्ठ संस्मरण बात मेरी शादी की है. रात्रिभोज के बाद सभी बरातीघराती शादी की बाकी रस्मों की तैयारी में जुटे हुए थे. वहीं पर एक मासूम सी दिखने वाली एक युवती थी, जो हर काम में आगे बढ़ कर सहयोग करना चाहती थी. पर घर के बड़ेबुजुर्ग उसे बारबार अपमानित कर वधू से दूर रहने को कह रहे थे.

यह सब देख कर मेरे दोस्त को अच्छा नहीं लगा. जब दोस्त ने इस का कारण जानना चाहा तो पता चला कि वह युवती विधवा है अत: उस का किसी भी मांगलिक कार्य में सहयोग करना अशुभ होगा. यह सुन कर मेरे दोस्त ने वहां उपस्थित सभी लोगों को बहुत समझाने की कोशिश की कि उस लड़की के विधवा होने पर उसे अशुभ मानना अमानवीय है. पर किसी ने उस की बात न मानी. उलटे उस युवती के साथसाथ मेरे दोस्त को भी अपमानित करना शुरू कर दिया. तभी मेरे दोस्त ने मंडप में एक कटोरी में रखे सिंदूर में से थोड़ा सा सिंदूर ले कर उस युवती की मांग में भर दिया और कहा कि अब यह भी सुहागिन हो गई है. अब इसे भी सभी मांगलिक कार्यों में शामिल किया जाए. यह देख कर वहां उपस्थित लोग हैरान रह गए.

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