फिल्म ‘सात खून माफ’ में सुसाना एना मैरी जोहानेस सच्चे प्यार की तलाश में 7 शादियां करती है. श्रीनगर में उस की मुलाकात एक रोमांटिक शायर वसीउल्लाह खान से होती है. शादी के बाद पता चला कि यह रोमांटिक शायर बिस्तर पर कुछ ज्यादा ही वहशी हो जाता है. हिंसा के साथ सैक्स का वह आनंद उठाता है. सुसाना को यह वैवाहिक बलात्कार बरदाश्त न हुआ और एक दिन वसीउल्लाह खान बर्फ के नीचे दब कर मरा पाया गया. बहरहाल, यह तो एक कहानी है. बेहतर हो यह कहानी ही रहे.

जाहिर है, वैवाहिक बलात्कार कानून के पक्ष में कहने को बहुत कुछ है. लेकिन ऐसे कानून बनने के खिलाफ दलील देने वालों की भी कोई कमी नहीं है. ज्यादातर पुरुष तो इस के खिलाफ हैं ही, इस में महिलाएं भी शामिल हैं. घरेलू और बुजुर्ग महिलाएं. कुल मिला कर उन का तर्क यह है कि महिलाओं से हर घरपरिवार होता है. परिवार को जोड़े रखने का दायित्व महिलाओं पर ही होता है. अगर वैवाहिक बलात्कार कानून बनता है, तो परिवार का टूटनाबिखरना तय है.

घरपरिवार के लिए समझौता

इस बात से इनकार नहीं कि हर समाज में वैवाहिक बलात्कार आम है, लेकिन हमेशा से परिवार को जोड़े रखने की दुहाई दे कर महिलाओं से ही समझौता करने के लिए कहा जाता है. लड़कियों के दिमाग में इस बात को शुरू से ही अच्छी तरह डाल देने की कोशिश होती है और यह कोशिश करती हैं घर की बड़ीबुजुर्ग महिलाएं.

मध्य कोलकाता में 2 बहुओं की सास दमयंती बेरी का कहना है कि पुरुषों के नियंत्रण वाले समाज में महिलाओं को घरपरिवार के लिए समझौता करना ही पड़ता है. पुरुष का स्वभाव ही ऐसा होता है कि पत्नी के रूप में वह प्रेमिका और सेविका दोनों का ही पुट चाहता है. इन दोनों रूपों में ही पत्नी जीवन की सार्थकता है.

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