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1 वर्ष बाद शुभेंदु ने दिल्ली पहुंचते ही कई प्रतिष्ठित कंपनियों में अपना आवेदनपत्र भेजना शुरू कर दिया. साक्षात्कार के लिए उन्हें बुलाया भी गया. शुभेंदु की शिक्षा और खाड़ी देश के अनुभव को देखते हुए कंपनियां उन्हें मोटी पगार के साथ, दुबई जैसी सारी सुविधाएं भी देने को तैयार थीं, किंतु बसु नोएडा स्थित बुटीक को छोटे से कारखाने में बदल कर रेडीमेड कपड़ों के आयातनिर्यात का काम शुरू करने की योजना बना चुकी थी.

निर्यात किए गए माल की देखभाल करने के लिए बसु ने दुबई में एक औफिस खोलने की बात पर जोर दिया तो शुभेंदु घबरा गए. बोले, ‘‘पेशे से इंजीनियर हूं. मैं ने बिजनैस कभी नहीं किया है. मैं ने जो कुछ कमाया है. कहीं ऐक्सपोर्ट और दुबई औफिस के चक्कर में उसे भी न गंवा दूं.’’

लेकिन बसु को ठहराव से नफरत थी. उसे तो आंधीतूफान की तरह बहना और उड़ना ही रुचिकर लगता था. अपने रूपजाल से शुभेंदु को ऐसा दिग्भ्रमित किया कि वे भी मान गए.

नोएडा, में कारखाने के नियंत्रण और संचालन का कार्यभार रवि ने अपने ऊपर ले लिया था. वह स्मार्ट तो था ही, चतुर भी था. पुलिस से ले कर, राजनेताओं तक उस की पहुंच थी, शुभेंदु को भी उस ने आश्वस्त किया कि जब तक बसु बिजनैस संभालने में पूर्णरूप से सक्षम नहीं हो जाती वह तब तक बसु के साथ रहेगा.

शुभेंदु निश्चिंत हो कर दुबई चले गए. अपना व्यवसाय आगे बढ़ाने के लिए बसु ने अपनी चालढाल बदली, वेशभूषा बदली, अंगरेजी बोलना सीखा. रवि हमेशा, साए की तरह उस के साथ रहता. उसे, अपनी कार में बैठा कर ले जाता. शाम ढलने के बाद छोड़ जाता. कभीकभी रात में भी वह उस के घर ठहर जाता था. जब तक रवि घर से बाहर नहीं निकलता था. महल्ले वालों की निगाहें बसु के घर पर ही चिपकी रहती थीं. महिलाएं बसु के विरुद्ध खूब विष उगलतीं, ‘‘कैसी बेहया औरत है? अपने मर्द को विदेश भेज कर दूसरे मर्द के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है.’’

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