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सुबह-सुबह राजपाल के फोन की घंटी बजी. फोन उठाया तो पता चला मालिक का था. उस के मालिक बड़ी हवेली वाले दीवान साहब. आज शनिवार को सुबहसुबह कैसे फोन आ गया. वह सोच में पड़ गया कि आज तो उस की छुट्टी रहती है. आज के दिन उसे दीवान साहब के जंगलों की तरफ जाना होता है. जंगलों की देखभाल का सारा काम उस के जिम्मे था. दीवान साहब बिलकुल अकेले रहते थे. 2 बार शादी हुई. दोनों बार नहीं चली. पहली पत्नी के साथ उन का एकलौता बेटा रहता था विदेश में. उन के 2 ही बच्चे थे. एक लड़का और एक लड़की. दूसरी पत्नी भी अलग रहती थी. उस ने दीवानजी से करोड़ों रुपए ऐंठे थे. दीवानजी का बहुत बड़ा कारोबार था.

‘‘हैलो,’’ राजपाल ने कहा.

उधर से दीवानजी की आवाज आई, ‘‘तुम इतवार को ठीक 11 बजे घर पहुंच जाना.’’

राजपाल को हैरानी हुई कि उन्हें पता है

कि वह 2 दिन जंगलों की तरफ जाता है और सोमवार को ही लौटता है पर दीवान दीनानाथ क्या बोल दें, कुछ पक्का नहीं कहा जा सकता था. दीवानजी की तबीयत भी ढीली थी. वैसे भी वे अकेले ही रहते. अपनी देखभाल के लिए एक गुर्जर औरत नूरां रखी हुई थी, जो उन की पूरी देखभाल करती थी.

पहले तो वह हवेली के केवल ऊपर के हिस्से का काम करती थी पर नूरां के सही ढंग से काम करने से खुश हो कर दीनानाथ ने पूरे घर की देखभाल उसे सौंप दी थी. घर की साफसफाई में उस की मदद बबलू करता था, जो रात को भी दीवानजी के पास रहता था.

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