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केशव बाबू गंभीर हो गए. पत्नी के प्रति घृणा करते हुए भी उन्होंने सहानुभूतिपूर्ण स्वयं में कहा, ‘‘तुम चिंता मत करो, लड़के के सिर पर अभी प्रेम का भूत सवार है. ऐसे प्रेम में गंभीरता और स्थायित्व नहीं होता. लिवइन रिलेशनशिप बंधनरहित होते हैं, इन में एक न एक दिन खटास अवश्य आती है, चाहे शादी को ले कर, चाहे बच्चों को ले कर या कमाई को ले कर या फिर उन के बीच में कोई तीसरा आ जाता है. जो रिश्ते शारीरिक आकर्षण पर आधारित होते हैं उन की नियति और परिणति यही होती है. जहां परिवार और समाज नहीं होता, वहां उच्छृंखलता और निरंकुशता होती है. देख लेना, एक दिन विप्लव और उस लड़की का रिश्ता टूट जाएगा.’’

‘‘परंतु वह कुछ करताधरता नहीं है. उस का भविष्य चौपट हो जाएगा.’’

‘‘वह तो होना ही है, जिस तरह की परवरिश और संस्कार तुम ने उस को दिए हैं, उस में उस का बिगड़ना आश्चर्यजनक नहीं है. न बिगड़ता तो आश्चर्य होता. अब हम कुछ नहीं कर सकते. ठोकर खा कर अगर वह सुधर गया, तो समझो सुबह का भूला शाम को घर वापस आ गया. वरना...’’

‘‘परंतु उस का खर्चा कहां से चलेगा?’’

‘‘मुझे लगता है, वह लड़की कहीं न कहीं नौकरी अवश्य करती होगी. जब तक उस के मन में विप्लव के लिए प्रेम रहेगा, वह उस का खर्चा उठाती रहेगी. जिस दिन उसे लगा कि विप्लव उस के लिए बोझ है या कोई अन्य लड़का उस के जीवन में आ गया, वह विप्लव को ठोकर मार देगी.’’ नीता रोने लगी. केशव बाबू ने उसे चुप नहीं कराया. कोई फायदा नहीं था. यह नीता की नासमझी का परिणाम था, परंतु विप्लव के पतन के लिए वह अकेली दोषी नहीं थी. इस में विप्लव का भी बहुत बड़ा हाथ था. कोई भी युवक नासमझ नहीं होता कि उसे अपने कर्मों के परिणामों का पता नहीं होता. प्यार उस ने अपनी बुद्धि और विवेक से किया था और उस ने कुछ सोचसमझ कर अपनी प्रेमिका के साथ रहना स्वीकार किया होगा. पढ़ने में वह कमजोर था, तो इस में उस की नालायकी और कामचोरी थी. हम जो कर्म करते हैं, उन के लिए स्वयं जिम्मेदार होते हैं. हम अपनी गलतियों के लिए किसी और को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते.

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