कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

छवि बच्चों को ले कर कौरीडोर में खड़ी थी. ड्राइवर गाड़ी ले आया. बच्चे कूद कर उस में बैठ गए. ड्राइवर बाहर निकल गया, वह समझ गई माहेश्वरी गाड़ी चलाएगा. वह चुपचाप आगे की सीट पर बैठ गई. माहेश्वरी आज बहुत स्मार्ट लग रहा था. जितनी देर बाहर वह मोबाइल पर बात करता रहा, छवि की नजर उसी पर टिकी रही.

माहेश्वरी गाड़ी का दरवाजा खोल कर बैठा. उस ने छवि को देखा. उसे देख कर वह चौंक गया. उस ने फिर छवि को देखा. बरसों बाद आंखों में काजल लगाई छवि आज उसे अलग नजर आ रही थी. पीछे एक बार बच्चों को देखते हुए उस ने फिर छवि को देखा और गाड़ी स्टार्ट की. मौल में प्रृशा का कपड़ा, प्रियम का ड्रैस खरीदा गया. दोनों के लिए खिलौने भी लिए गए. माहेश्वरी शर्ट की शौप पर रुक कर शर्ट देखने लगा. उस ने शर्ट पसंद की और बिल बनाने को कहा.

छवि ने शर्ट पर लगा धब्बा दिखाया. माहेश्वरी ने दूसरी मांगी और मोबाइल पर बात करने लगा. माहेश्वरी की मांगी शर्ट का वह कलर और नहीं था. छवि ने एक दूसरे रंग की शर्ट हाथ में उठाया, तभी माहेश्वरी आ गया. दुकानदार बोला, ‘सर, वह कलर नहीं है, मैडम ने उस की जगह इसे रखा.’

माहेश्वरी ने कहा, ‘ठीक है, जब मैडम ने कहा है, तब यही फाइनल है, बिल बना दो.’

‘मैं ने बस यह शर्ट पकड़ी थी,’ छवि ने धीरे से कहा.

माहेश्वरी ने उसे देखा. पर कुछ जवाब नहीं दिया. ठीक उस के सामने हैंडलूम साड़ियों की दुकान थी. छवि उसे देखे जा रही थी, जिसे माहेश्वरी ने देख लिया था. वह उस साड़ी की दुकान की ओर बढ़ा. छवि समझ गई, इसलिए वह धीरेधीरे चल रही थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...