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रंग जीवन में नया आयो रे: क्यों परिवार की जिम्मेदारियों में उलझी थी टुलकी
घर की बड़ी बेटी होने का दंड सहती टुलकी के बोझिल जीवन में आखिर वह कौन सा समय आया जब एक बंद पिंजरे की मैना को ऊंची उड़ान भरने का अवसर मिला.
भाग - 1
घंटी की आवाज से मैं एकदम चौंक उठी. सोचा, बेवक्त कौन आया है नींद में खलल डालने. उठ कर देखा तो डाकिया बंद दरवाजे के नीचे से एक लिफाफा खिसका गया था.
भाग - 2
वह चुप रही. मन में कुछ तौलती रही कि मुझ से कहे या न कहे. मैं उसे इस स्थिति में देख प्रोत्साहित करते हुए बोली, ‘तुझे पतंग चाहिए?’
भाग - 3
निश्चय करते ही मुझे अस्पताल की थका देने वाली जिंदगी एकाएक उबाऊ व बोझिल लगने लगी. सोच रही थी कि दो दिन पहले ही छुट्टी ले कर चली जाऊं.
दुखों में हिम्मत न हारें
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