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रात को सिरदर्द का बहना बना जल्दी सोने का नाटक किया. सोचती रही उस के मातापिता बेचारे ऐसा योग्य नेक दामाद पा कर कितना खुश हैं. नहीं, नहीं मैं उन का यह भ्रम बनाए रखूंगी. राजेश को मैं ही सबक सिखाऊंगी.

कुल्लूमनाली में उस ने नोटिस किया कि बड़ेबड़े खर्चे उसी के ऐटीएम से रुपए निकाल कर हो रहे हैं. छोटेमोटे खर्च वह अपने क्रैडिट कार्ड से करता. घर वालों के लिए उपहार ले कर वह बहुत संतुष्ट था. उस ने भी बहाने से उस के पर्स से क्रैडिट कार्ड निकाल अपने मातापिता के लिए दुशाला व शाल ले ली. क्रैडिट कार्ड वापस राजेश के पर्र्स में रख दिया. बातोंबातों में राजेश बड़े ही प्यार से उस से उस की अभी तक की सेविंग्स, पीएफ, वेतन आदि की जानकारी लेता रहा. नीलम भी सावधान थी. उस ने कोई भी जानकारी सही नहीं दी.

घर लौट कर नीलम ने बड़ी होशियारी से सब के लिए लाए उपहार उन्हें दिए, साथ में मेरी ओर से, मेरी ओर से कहना नहीं भूली. राजेश चुप रह गया. वह जानता था कि सब नीलम के पैसों से खरीदा है. सभी नीलम से खुश हो गए.

अब जीवन की गाड़ी अपनी रोजमर्रा की पटरी पर आ गई. राजेश का औफिस

नीलम के स्कूल के आगे ही था. राजेश अगर थोड़ा जल्दी निकल जाए तो नीलम को समय पर स्कूल छोड़ आगे जा सकता. वह स्कूटर पर जाता था. नीलम ने जब उस के सामने यह प्रस्ताव रखा तो उस ने हामी भर दी.

राजेश दूसरेतीसरे दिन नीलम के कार्ड से पैट्रोल के बहाने मनमाने रुपए निकलवा लेता था पर ले जाने के समय सप्ताह में 3 या 4 दिन ही ले जा पाता. कोई न कोई बहाना बना देता.

नीलम ने यह भी नोटिस किया कि छोटे भाई या बहन को कुछ पैसों की जरूरत होती तो वे दोनों चुपके से उस से मांग लेते और कह देते किसी को मत कहना.

नीलम अभी नई थी. ज्यादा कुछ नहीं कह पाती. पर उस ने सोच लिया कि इस का भी कोई न कोई हल निकालना पड़ेगा. 1-2 महीने ऐसे ही गुजर गए. नीलम के ही वेतन से लगभग परिवार का खर्चा चल रहा था. सभी को बचत करने की पड़ी थी. पापा अपनी पैंशन से धेला भी खर्च नहीं करते. यही हाल राजेश का था. राशन, दूध, बाई, बिजलीपानी का बिल, फलसब्जियों सबका भुगतान नीलम करती. छोटेछोटे खर्च राजेश दिखावे के लिए करता.

एक दिन नीलम मायके गई तो उस ने अपने पापा को कुछ उदास पाया. बारबार पूछने पर उन्होंने बताया कि मकान बनाने पर अनुमान से बहुत ज्यादा पैसा लग चुका है. अब हालत यह है कि मकान में लकड़ी का काम करवाने के लिए पैसे कम पड़ गए हैं. बिल्डर ने काम रोक दिया है. नीलम को मन ही मन बहुत दुख हुआ कि जिन मातापिता ने शिक्षा दिलवाई, कमाने योग्य बनाया वही आज पैसों की तंगी सहन कर रहे हैं. वह उदास मन से वापस आई. महीने के खत्म होते ही छुट्टी के दिन जब सवेरे सब फुरसत चाय की चुसकियां ले रहे थे उस समय नीलम ने बड़ी शालीनता और अपनेपन की चाशनी पगी जबान में कहा, ‘‘देखिए, कायदे से हमारे घर 3 जनों की आमदनी आती है- मेरी और राजेशजी का वेतन और पापाजी की पैंशन पर बचत के नाम पर कुछ भी नहीं है ऐसे कैसे चलेगा. मुझे तो बहुत चिंता होती है. सुरेश भैया की पढ़ाई के 2 साल बाकी हैं. मधु की शादी भी करनी है,’’ ऐसी अपनेपन और जिम्मेदारी वाली बातें कर उस ने सब का दिल जीत लिया.

‘‘आगे खर्च बढ़ेंगे. इसलिए हमें अभी से प्लानिंग कर के खर्च करना चाहिए.

आज हम यह देख लेते हैं कि इस महीने किस ने कम खर्च किया किस ने ज्यादा. सब अपने द्वारा किए हुए खर्च का ब्योरा दें. जिस का खर्च ज्यादा हुआ होगा उसे इस महीने राहत दी जाएगी.

‘‘नए महीने से सब बराबर खर्च करेंगे ताकि सब की थोड़ीबहुत बचत होती रहे जो भविष्य में होने वाले खर्च में सहायक बने.’’

एक कागज पर तीनों ने अपने द्वारा किए खर्च का ब्योरा लिखा. जब उस ब्योरे को जोरजोर से पढ़ा गया तो सब से ज्यादा रकम नीलम की ही खर्च हुई थी. राजेश के भाईबहन द्वारा लिया सारा खर्च भी सबके सामने स्पष्ट हो गया.

राजेश थोड़ा झेंप गया क्योंकि उस ने भी नीलम का बहुत पैसा निकाला था. अगले महीने के लिए सारे खर्च को बराबरबराबर बांट दिया गया. अब नीलम की अच्छीखासी बचत हो जाती थी. वह गुप्त रूप से माएके का मकान बनाने वाले बिल्डर से मिली. कुछ अग्रिम पैसा दे कर उस से कहा कि आप मकान का लकड़ी का

काम पूरा करिए. मैं समयसमय पर भुगतान करने आती रहूंगी. पापा को इस बात का पता नहीं लगना चाहिए.

1 महीने के अंदर घर का लकड़ी का

काम हो गया. नीलम ने मकान की सफाई वगैरह करवा कर सारा हिसाब चुकता कर दिया. उस

ने मकान की चाबी पापा को दे कर शिफ्ट होने

को कहा.

यह सब जान पापा चकित रह गए. बेचारे नीलम की इस मदद से शर्म से झके जा रहे थे. नीलम ने इस बात को गोपनीय रखने को कहते हुए पापा से कहा कि आप को इस मदद के लिए शर्म, लज्जा महसूस करने की आवश्यकता नहीं है. आप का हमारे ऊपर पूरा हक है क्योंकि आप ने ही हमें इस योग्य बनाया है.

राजेश भी कम न था. उस ने बिना दहेज के शादी की थी. मन ही मन नीलम से उस का मुआवजा चाहता था. एक दिन नीलम को उस के एक सहकर्मी से पता चला कि उस ने राजेश को कार के शोरूम में कार पसंद करते देखा. राजेश नीलम के सहकर्मी को पहचानता न था. नीलम को अंदाजा लग गया कि शीघ्र ही उस से रुपए ले कर राजेश कार खरीदने की योजना बना रहा है. नीलम ने भी एक योजना बना डाली.

अपने 2 बुजुर्ग सहकर्मियों को जो बहुत समझदार व अनुभवी थे अपने साथ ले कर एक नामी कार के शोरूम जा पहुंची. बहुत सोचसमझ कर उस ने एक कार पसंद की, डाउन पेमेंट कर आसान किश्ते बनवा लीं. कार उस ने अपने नाम से खरीदी. कार चलाना उसे कालेज के समय से आता था. 3-4 दिन उस ने सहकर्मी की पुरानी कार से अभ्यास किया. आत्मविश्वास आ जाने पर कार ले कर घर आई. पूरा परिवार देख कर चकित रह गया.

नीलम ने कहा, ‘‘मेरे मम्मीपापा ने विवाह की पहली वर्षगांठ पर मुझे दी है.’’

राजेश और उस के परिवार को खुशी तो

थी पर कार की मालकिन तो आखिर नीमम ही थी. बिना नीलम की इजाजत के कोई स्वेच्छा से कार नहीं ले जा सकता.

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