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हर कक्षा अव्वल नंबरों से उत्तीर्ण करती हुई पलक अब आकर्षक, बुद्धिमान एवं आधुनिक तरुणी बन चुकी थी. पारिवारिक संस्कार एवं आधुनिकता के अद्भुत संगम वाले व्यक्तित्व की स्वामिनी पलक आधुनिक पीढ़ी की सोच के अनुरूप ही हर बात तार्किक ढंग से सोचनेसमझने में विश्वास रखती थी.

प्रथम श्रेणी में इंटर करने के साथ ही उस का मैडिकल की हर प्रतियोगी परीक्षा में चयन होने से घर में खुशी की लहर दौड़ गई थी. एक लंबे अंतराल के पश्चात स्मिता ने सुख व चैन की सांस ली. बेटी के जीवन की एक दिशा तय होने के सुकून के साथ ही अपनी जिम्मेदारियों का सही निर्वाह कर पाने का संतोष भी था. मैडिकल कालेज में दाखिला होते ही पलक भी दूसरे शहर चली गई. उस के बाद के 5-6 वर्ष तो जैसे महीनों में बंट कर रह गए. हर वर्ष छुट्टियों में पलक के आने पर स्मिता के लिए तो घर में त्योहार जैसा माहौल हो जाता था. जितनी बेकरारी से वह बेटी के आने का इंतजार करती थी, उस के जाने के बाद उतनी ही बेचैन हो जाती. पर उस बेचैनी में भी कहीं गहरा आत्मसंतोष होता था. बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए सभी मांबाप कभी न कभी इस दौर से गुजरते ही हैं. आज बेटी को डाक्टर बन कर अपनी डिगरी प्राप्त करते देख उस के पूरे जीवन की तपस्या मानो सार्थक हो उठी थी.

पुरानी यादों में खोई स्मिता को समय बीतने का कुछ पता ही न चला था. उस ने घड़ी पर निगाह डाली. उसे आए घंटा भर से कुछ ज्यादा ही हो चुका था. पलक के आने का समय हो रहा था. आज पलक की पसंद का पूरा डिनर बनाने वह किचन की तरफ बढ़ गई.

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