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वह किसी को कुछ समझा नहीं सकता था न कोई सफाई दे सकता था. ललिता ने सबकुछ क्यों किया यह तो उसे आजतक नहीं पता चला न उस ने जानना चाहा लेकिन उस के दिमाग में कई बार यह बात जरूर कौंधी थी कि सुमन ललिता की एकलौती बेटी थी. क्या इस का मतलब यह कि किशोर में कुछ कम... नहीं नहीं वह इस तरह की कोई बात सोचना भी नहीं चाहता था.

वह अब क्या करेगा नहीं जानता. लेकिन कविता को सब सच बता देगा यह तो तय है. लेकिन, कविता से माफी मांग लेने से या माफी मिल भी जाए तब भी गांववालों और किशोर से कैसे सामना करेगा यह वह नहीं जानता. उस की एक गलती इतने सालों बाद उस का घरौंदा तोड़ देगी मुरली ने इस की कल्पना भी नहीं की थी.

दिन लंबा था और उसे काटना बेहद मुश्किल. कोमल बाहर आंगन में अपने खिलौनों में गुम थी और कविता कभी धम से एक परात पटकती तो कभी भगौना.

सुबह के वाकेया को 3 घंटे बीत चुके थे. धूप गहराई हुई थी. मुरली और कोमल अंदर कमरे में थे और कविता ने रसोई को अपना कमरा बना रखा था. घर में लाइट नहीं थी और यह दिल्ली तो थी नहीं कि इनवर्टर चला पंखें की हवा खा सकें. गरमी से मुरली का सिर भन्ना रहा था, पंखा ढुलकाते हुए उस के हाथ दुखने लगे थे. कोमल सो रही थी और मुरली उसे भी हवा कर रहा था. लेकिन, छोटी सी रसोई में कविता गरमी से कम और आक्रोश से ज्यादा तप रही थी.   मुरली को चिंता होने लगी कि कविता कहीं बीमार न पड़ जाए.

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