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19 साल की लड़की 43 साल की स्त्री को भला क्या समझेगी, ऐसा सोच कर मेरी समझ पर आप की कोई शंका पनप रही है तो पहले ही साफ कर दूं कि जिस स्त्री की चर्चा करने जा रही हूं, उस की यात्रा का एक अंश हूं मैं. उसी पूर्णता, उसी उम्मीद की किरण तक बढ़ती हुई, चलती हुई हेमांगी की बेटी हूं मैं.

43 साल की हेमांगी व्यक्तित्व में शांत, समझ की श्रेष्ठता में उज्ज्वल और कोमल है. वह विद्या और सांसारिक कर्तव्य दोनों में पारंगत है. तो, हो न. तब फिर क्यों भला मैं उस की महानता का बखान ले कर बैठी? यही न, इसलिए, कि 19 साल की उस की बेटी अपने जीवनराग में गहरी व अतृप्त आकांक्षाएं देख रही है, एक छटपटाहट देख रही है अपने जाबांज पंख में, जो कसे हैं प्रेम और कर्तव्य की बेजान शिला से. यह बेटी साक्षी है दरवाजे के पीछे खड़े हो कर उस के हजारों सपनों के राख हो कर झरते रहने की.

तो फिर, नहीं खोलूं मैं सांकल? नहीं दूं इस अग्निपंख को उड़ान का रास्ता?

आइए, समय के द्वार से हमारे जीवनदृश्य में प्रवेश करें, और साक्षी बनें मेरे विद्रोह की अग्निवीणा से गूंजते प्रेरणा के सप्तस्वरों के, साक्षी बनें मेरे छोटे भाई कुंदन के पितारूपी पुरुष से अपनी अलग सत्तानिर्माण के अंतर्द्वंद्व के, मां के चुनाव और पिता के असली चेहरे के.

हम मध्य प्रदेश के खंडवा जिले के रामनगर कालोनी के पैतृक घर में रहते हैं. इस एकमंजिले मकान में 2 कमरे, एक सामान्य आकार का डाइनिंग हौल और एक ड्राइंगरूम है. बाहर छोटा सा बरामदा और 4र सीढ़ी नीचे उतर कर छोटेछोटे कुछ पौंधों के साथ बाहरी दरवाजे पर यह घर पूरा होता है.

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