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घर पहुंच कर उस ने अपनी भाभी से मेरा परिचय कराया. उस का नाम लता था. वह भी सुंदर थी, साथ ही सलीकेदार व्यवहार के कारण कुछ ही क्षणों में मुझ से घुलमिल गई.

मैं पूछना तो नहीं चाहती थी, पर रहा न गया. इसीलिए उस की भाभी से पूछ बैठी, ‘मौसीजी कहां हैं?’

‘वे बाजार गई हुई हैं,’ लता मुसकराती हुई बोली.

इतने में दरवाजे की घंटी बजी. लता एक झटके के साथ खुशीखुशी उठ खड़ी हुई. ‘शायद वे आ गए’ इतना कह कर वह दरवाजा खोलने चली गई.

‘रेखा, तुम?’ अपना नाम सुन कर सामने देखा.

‘सुधीर, तुम?’ सामने सुधीर को देख हैरान हो गई.

‘ये मेरे भैया हैं,’ सुमन परिचय कराते हुए बोली, ‘और सुधीर भैया, ये शीबा की बड़ी बहन हैं.’

‘तो तुम मेरी पड़ोसिन हो?’ सुधीर लता को ब्रीफकेस थमाते हुए बोला.

‘मैं नहीं, तुम मेरे पड़ोसी हो, क्योंकि बाद में तुम आए

हो. हम तो पहले से ही यहां रहते हैं.’

‘पर मैं ने सुना था, तुम्हारी शादी हो गईर् है और विदेश चली गई हो,’ सुधीर सोफे पर बैठता हुआ बोला.

‘जी हां, आप ने ठीक सुना. अभी महीनेभर से पीहर आईर् हुई हूं. पर, तुम्हें मेरे बारे में कैसे मालूम?’

‘भई, हम तो सभी दोस्तों के बारे में खबर रखते हैं. स्वार्थी तो लड़कियां होती हैं. जहां अपना सुख देखती हैं, वहीं चली जाती हैं. यहां तक कि मांबाप को भी छोड़ देती हैं.’

‘अच्छाअच्छा, अब चुप हो. लड़कियों की अपनी मजबूरियां होती हैं.’

‘हां भई, सारी मजबूरियां तो औरतों की ही होती हैं.’

‘बाप रे, आप लोगों ने तो लड़ना शुरू कर दिया,’ लता बोली, ‘आप लोग एकदूसरे को कैसे जानते हैं?’

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