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लव अकेला पड़ा था. वर्षा का मन फिर से भीगने लगा. वह उस के नजदीक बैठ कर प्यार से उसे खिलाने लगी. फिर उठ कर चली तो लव ने उस की साड़ी का पल्लू थाम लिया और बोला, ‘‘कुछ देर और बैठो, मां.’’

वर्षा रुक कर उस के सिर पर हाथ फेरती रही. लव ने सुख का आभास कर के आंखें बंद कर लीं, पर भरत की पुकार पर वर्षा को नीचे आना पड़ा.

अगले दिन सुबह नाश्ते से निबट कर उस ने लव की चारपाई छत पर डाल दी और जाले साफ कर के कमरा रगड़रगड़ कर धोया, अगरबत्तियां जला कर बदबू दूर की फिर उस के मैले वस्त्रों को धो कर चमकाया. तत्पश्चात वह लव की मालिश करने बैठ गई.

मां कहती रहीं, ‘‘मैं कर दूंगी, तू फालतू की मेहनत क्यों कर रही है. इस कमरे में अकेला लव थोड़े ही सोता है, मैं भी तो सोती हूं.’’

मगर वर्षा के हाथ नहीं रुके, वह लव के सारे काम खुद ही निबटाती रही.

दोपहर ढलते ही अचानक ड्राइवर वर्षा व भरत को लेने आ पहुंचा तो सब को आश्चर्य हुआ. मां ने टोक दिया, ‘‘अभी 2 दिन कहां पूरे हुए हैं?’’

ड्राइवर बोला, ‘‘मुझे साहब ने दोनों को तुरंत लाने को कहा है. साहब भरत को बहुत प्यार करते हैं. भरत के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. इस के अलावा सब लोगों को एक शादी पर भी जाना है.’’

बेटी पराए घर की अमानत ठहरी सो मां भी कहां रोक सकती थीं. वह वर्षा की विदाई की तैयारी करने लगीं, पर सुधीर का न आना सब को खल रहा था.

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