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भारी मन से मैं घर से साहिल के घर पहुंच गई. वहां काफी भीड़ थी. शाम को मन न होते हुए भी पार्टी में जाना पड़ा, पर सारा वक्त मन साहिल के खयाल में ही डूबा रहा. मांजी को गुजरे हुए 13 दिन हो गए तो साहिल ने औफिस आना शुरू कर दिया. हमारा मिलनाजुलना फिर शुरू हो गया. मैं ने

महसूस किया कि अब हम पहले से ज्यादा करीब आ चुके थे. जो प्यार व सम्मान मुझे अमन से नहीं मिला था वह साहिल ने मुझे दिया था.

एक दिन साहिल ने मुझ से कहा, ‘‘शिवी, मां के जाने के बाद मैं बिलकुल अकेला हो गया हूं. तुम मेरे पास आ जाओ तो हम अपनी दुनिया बसाएंगे.’’

मैं बहुत खुश हो गई. मुझे उस वक्त अमन का खयाल तक नहीं आया. मैं ने साहिल से कुछ वक्त मांगा. उस शाम मैं जब घर पहुंची तो अमन पहले ही घर आ चुके थे. उन्होंने मुझे बताया कि अगले दिन मम्मीपापा कुछ दिनों के लिए हमारे पास आ रहे हैं. मैं ने साहिल से फोन पर कहा कि मैं कुछ दिन नहीं मिल पाऊंगी.

सासससुर के घर में आते ही मेरा सारा ध्यान घर पर लग गया. अमन भी अब जल्दी घर आ जाते थे. मैं साहिल से फोन पर भी ठीक से बात नहीं कर पा रही थी. एक दिन मौका पा कर मैं ने साहित से बात की.

फोन उठाते ही वह बोला, ‘‘शिवी, प्लीज मेरे साथ ऐसा मत करो. तुम जानती हो कि मैं तुम्हारे बिना अब नहीं रह सकता.’’

‘‘साहिल तुम समझने कोशिश करो. घर पर मम्मीपापा हैं, उन को वापस जाने दो फिर हम मिलेंगे,’’ मैं ने उसे समझया.

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