घरपहुंचते ही हम ने देखा कि हमारी श्रीमतीजी अपने सामने छप्पन भोग की थाली लिए गपागप खाए जा रही थीं.
हम उन्हें देख कर खुशी से गुब्बारे की तरह फूल गए. हमारी श्रीमतीजी इतनी दुबलीपतली हैं कि एक बार उन्हें ले कर हम रेलवे स्टेशन पर गए तो वहां कमाल हो गया. वहां तोलने वाली मशीन पर उन्होंने अपना वजन जानने की जिद की तो हम ने मशीन में 1 रुपए का सिक्का डाला और उन को मशीन पर खड़ा कर दिया. थोड़ी देर में मशीन से टर्रटर्र की आवाज आई और एक टिकट निकल कर बाहर आया. उस पर लिखा था कि मुझ से मजाक मत करो. पहले मशीन पर खड़े तो हो जाओ. हम ने माथा ठोंक लिया.
श्रीमतीजी कहने लगीं, ‘‘यह मशीन झूठ बोलती है. आप खड़े हो जाइए, फिर देखते हैं कि मशीन क्या बोलती है.’’
हम ने 1 रुपए का सिक्का पुन: डाला. टर्रटर्र की आवाज के साथ एक टिकट निकला, जिस पर लिखा था कि 2 व्यक्ति एकसाथ खड़े न हों.
गुस्से में हम ने सोचा कि एक लात मशीन को मार दें, लेकिन हम जानते थे कि चोट हमारे ही पांव में लगेगी. इसलिए हम अपनी श्रीमतीजी को प्लेटफार्म घुमा कर लौट आए.
घर आ कर हम ने उन से खूब कहा कि आप खाना खाया करो, टौनिक पीया करो, लेकिन उन्होंने मुंह फेरते हुए कहा, ‘‘मेरी बिलकुल भी इच्छा नहीं होती है खाना खाने की.’’
हम उन के इस तरह दुबले होने से बेहद चिंतित थे लेकिन एक दिन जब हम शाम को घर आए और अपने सामने छप्पन भोग लगाए उन्हें गपागप खाते देखा तो हमारी बड़ी इच्छा हुई कि नाचने लगें, लेकिन शांति बनाए रहे.
प्रसन्न मुद्रा में हम ने श्रीमतीजी को देखा तो उन्होंने हमें भी छप्पन भोग खाने के लिए इशारा किया. हम ने शरीफ पति की तरह मना कर दिया. तभी परदे की ओट से किसी की हंसी की आवाज आई. हम तो डर ही गए. फिर देखा तो सामने सासूमां खड़ी थीं.
‘‘अरे, आप कब आईं?’’
‘‘आप जब सुबह औफिस गए थे, तब आई थी.’’
‘‘आप ने आने की खबर क्यों नहीं दी?’’
‘‘सोचा सरप्राइज दूंगी,’’ कह कर वे पुन: जोर से हंस पड़ीं.
‘‘अचानक कैसे आना हुआ?’’
‘‘अपने भाई के घर जा रही थी, सोचा सरला से भी मिलती चलूं… यह तो बहुत ही दुबली हो गई है.’’
‘‘फिर आप ने ऐसा क्या किया कि छप्पन भोग बनाते ही इन्हें भूख लग आई?’’ हम ने आगे बात को जोड़ते हुए कहा.
‘‘आप की यही बहुत बुरी बात है कि आप किसी की सुनते नहीं. हमारी बात खत्म तो हो जाने देते,’’ उन्होंने तनिक नाराजगी के साथ कहा.
‘‘आप ही बात पूरी कर लीजिए,’’ कहते हुए हम सोफे पर पसर गए.
सासूमां ने बात आगे बढ़ाई, ‘‘मैं सुबह आई तो सरला को इतना दुबला देख कर
चकित रह गई. मैं ने इस से पूछा भी कि आखिर बात क्या है? तो इस ने कहा कि कुछ भी नहीं. मैं बड़ी परेशान थी. अचानक मुझे ध्यान आया कि आप के शहर में खाने वाले बाबा का बड़ा नाम है.’’
‘‘खाने वाले बाबा?’’ हम ने आश्चर्य से पूछा.
‘‘जी हां, खाने वाले बाबा. उन का बड़ा प्रताप है. उन के पास सभी प्रकार की समस्याओं के लिए एक ही इलाज होता है.
यदि किसी की ग्रहदशा खराब हो तो वे कुत्ते से ले कर सूअर तक को खाना खिलाने को कहते हैं…’’
वे कुछ और कहतीं कि हम ने बीच में बात काट दी, ‘‘सासूमां, कुत्ता तो गले से उतर रहा है, लेकिन सूअर वाली बात…’’
‘‘आप भी क्या दामादजी बाल की खाल निकालते हैं,’’ कह कर वे झेंप गईं. फिर कहने लगीं, ‘‘बस मैं सरला को ले कर बाबाजी के दरबार में गई. पूरे 2,100 रुपए की 2 रसीदें कटवाईं और उन के सामने हाजिर हो गई. उन्होंने हमें 3 मिनट का समय दिया. वाह, क्या दरबार भरा था. होंगे हजार लोग, सब हाथ जोड़े खाने वाले बाबा की महिमा का गुणगान कर रहे थे.
‘‘एक ने बताया कि बाबाजी आप ने कहा था कि कौओं को हलवा खिलाओ, इसलिए 1 दर्जन कौओं को खोज कर 3 किलोग्राम असली घी का हलवा खिला दिया. लेकिन बाबाजी सुबह वे सब मर गए.
‘‘बाबाजी जोर से हंस दिए और कहने लगे कि बेटा, तेरे दुखदरिद्र खत्म हो गए. अब तेरी विजय ही विजय है. वह भक्त वहीं खड़ाखड़ा कांपते हुए नाचने लगा.
‘‘अगले भक्त ने बताया कि बाबाजी आप ने मुझे पड़ोसी को भोजन कराने की सलाह दी थी. कहा था पकौड़े खिलाना.
‘‘‘खिलाए या नहीं?’
‘‘‘खिलाए बाबाजी.’
‘‘‘फिर क्या हुआ?’
‘‘‘बाबाजी उस ने सुबह आ कर खूब जूते मारे.’
‘‘‘क्यों?’
‘‘‘पूरे घर वालों को दस्त लग गए थे.
वह बहुत गुस्से में था. मैं ने चुपचाप जूते खा लिए बाबाजी.’
‘‘‘ठीक किया. बेटा, ये जूते तुझे नहीं उस प्रेत आत्मा को पड़े जो तुझे आगे बढ़ने से रोक रही थी. अब वह चली गई है. तेरा भाग्य उदय होने को है, समझा? वह भक्त भी तक धिना तक कह के नाचने लगा.
‘‘जब हमारी बारी आई तो मैं ने बताया कि मेरी बेटी सरला के पास सब कुछ है, फिर भी इसे भूख नहीं लगती. यह ठीक से कुछ खाती नहीं है.
‘‘बाबाजी ने मुझ से कहा कि माताजी पूरे छप्पन मीठे भोग बना कर 2 दिनों तक खिलाओ, उस के बाद प्रताप देखना.
‘‘बाबाजी की जय हो, कह कर हम मांबेटी ने 1 मिनट तक वहां भरतनाट्यम किया और फिर घर आ गईं.
‘‘घर आ कर मैं ने छप्पन भोग बनाए और बाबाजी का चमत्कार देखिए कि बेटी कैसे गपागप चट कर रही है. जय हो खाने वाले बाबाजी की,’’ कह कर सासूमां ने आंखें बंद कीं और हाथ जोड़ लिए.
‘‘तो 1 सप्ताह तक छप्पन भोग बनेंगे?’’
‘‘1 सप्ताह नहीं, मात्र 2 दिनों तक,’’ हमारी सासूमां ने कहा.
छप्पन भोग का सेवन करती हुई श्रीमतीजी को देख कर हमारी खुशी का ठिकाना न रहा. हमारा मन बारबार खाने वाले बाबा की जय करने को हो रहा था. वास्तव में देश में, परिवार में ऐसे चमत्कार बाबा और सिर्फ बाबा ही कर सकते हैं.
रात में सासूमां ने हमें नींद से जगाया और घबराए स्वर में कहने लगीं, ‘‘सरला बेटी अजीबोगरीब हरकतें कर रही है.’’
नागिन की तरह फर्श पर बलखाती श्रीमतीजी को देख कर हम दंग रह गए.
‘‘क्या हो गया प्रिय?’’ हम चीखे.
उन्होंने हमें फटीफटी आंखों से ऐसे देखा जैसे कोई इच्छाधारी नागिन हो. अचानक हमें ध्यान आया कि यही इच्छाधारी नागिन हमारी श्रीमतीजी के पेट में थी, जो खानेपीने नहीं दे रही थी. सासूमां अगरबत्ती जला लाई थीं. श्रीमतीजी अभी भी ऐंठ रही थीं.
हमें कुछ शक हुआ कि मामला कुछ उलटा है. हम ने अपने घर के फैमिली डाक्टर को फोन लगाया तो वे बेचारे तुरंत आ गए. श्रीमतीजी को अस्पताल में भरती कर जांच की गई. पता चला कि इतना खाने की आदत नहीं थी.
बाबाजी के आदेश के चलते जबरदस्ती खा लिया इसलिए बदहजमी हो गई. शुगर टैस्ट किया तो श्रीमतीजी डायबिटीज की मरीज भी निकलीं. मीठा खाने से शुगर लैवल अत्यधिक बढ़ गया था.
वह तो भला हो डाक्टर झटका का, जिन्होंने सही समय पर चिकित्सा कर दी. सब से बुरी स्थिति तो हमारी सासूमां की थी, जो एक ओर मुंह पर पल्ला किए खाने वाले बाबा को कोस रही थीं.
यदि उन की बेटी को कुछ हो जाता तो बाबा यही कहते कि प्रेत उसे ले गया. लेकिन हमारी श्रीमतीजी और एक मां की इतनी बड़ी, पलीपलाई बेटी खो जाती.
श्रीमतीजी पूरे 1 सप्ताह अस्पताल में रह कर लौटीं. अब हम ने कान पकड़ लिए हैं कि हमें कभी उन्हें ऐसे बाबाओं के चक्कर में हम उन्हें नहीं पड़ने देंगे.
कल टीवी पर देखा था कि ऐसे 1 दर्जन डायबिटीज के मरीजों ने थाने में खाने वाले बाबा के नाम शिकायतें दर्ज करवाई हैं. अब आएगा मजा जब बाबाजी थाने और जेल में अपनी ग्रहदशा को सुधारेंगे. सही कहा न हम ने?