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इस इलाके में बहुत सुंदरसुंदर घर हैं और इन घरों के मालिक भी पैसों के लालच से खुद को बचाए हुए हैं. इसी इलाके के सब से सुंदर घरों में एक घर शिवनाथजी का है जहां पर एक सुंदर बगीचा भी है. शिवनाथजी अकेले हैं. उन्हें किसी प्रकार के नशे की लत नहीं है. उन के विरोधी कहते हैं कि वे किसी भी प्रकार का नशा इसलिए नहीं करते क्योंकि वे एक भी पैसा खर्च नहीं करना चाहते. हर पैसे में उन की सांस अटकी रहती है. पैसे खर्च होने के डर से उन्होंने शादी तक नहीं की. पड़ोसियों से ज्यादा मेलजोल इसलिए नहीं रखा कि उन के आने पर चाय, चीनी और दूध का खर्चा होगा.

घर में उन को छोड़ बस उन के पिता का लाया एक नौकर मदन है, जो अब 60 साल का बूढ़ा हो चला है. वह घरबाहर का सारा काम कर के आज भी मालिक से 100 रुपए पाता है. खाना और होली, दीवाली को एकएक जोड़ी कपड़े उसे मालिक की तरफ से मिलते हैं. चूंकि मोहन को बागबानी का शौक है अत: अपने इस शौक के लिए वह पौधों के खाद, बीज आदि में अपनी पगार का आधा पैसा लगा देता है. उस का अपना कोई नहीं है. यह बगीचा, पेड़पौधे, फूल ही उस का परिवार हैं.

शिवनाथजी की आयु 80 साल की है पर उन को देख कर लगता है कि अभी 60 साल के आसपास के हैं. लंबा, गठीला शरीर, साफ रंग. शायद वे इस शरीर को निरोग रखने का रहस्य जानते हैं. जीभ और मन पर उन का पूरा संयम है. पर मदन कुछ और कहता है, ‘‘संयम तो उन का ढकोसला है, असली कारण है कंजूसी. खर्चे के डर से जो इंसान शादी नहीं करता, पड़ोसियों से कोई संपर्क नहीं रखता था क्या वह पैसे खर्च कर के खाने, पहनने, घूमने का शौक रखेगा. अरे, मेरा दुनिया में कहीं कोई और ठिकाना होता तो यह 2 जोड़ी कपड़े, रोटी और 100 रुपए महीने पर मैं यहां पड़ा रहता? मालिक के पास कितना पैसा है इस का अंदाजा नहीं है.’’

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