पूरे घर में तूफान से पहले की शांति छाई हुई थी. पूरे महल्ले में एक हमारा ही घर ऐसा था जहां 4 पीढि़यां एकसाथ रह रही थीं. मेरी दादीसास इस का सारा क्रैडिट मेरी सासूमां को देती थीं, जिन्होंने अपनी उम्र के 15वें वसंत में ही उन के घर को खुशियों से भर दिया था और मेरे ससुरजी के 5 छोटे भाईबहनों सहित खुद अपनी 7 संतानों को पालपोस कर बड़ा किया.

दरअसल, मेरे पति सुमित मम्मीजी की गोद में तभी आ गए थे, जब वे स्वीट सिक्सटीन की थीं. उन्होंने अपनी सास को पोता थमा दिया और उन से घर की चाबियां हथिया लीं. वह दिन और आज का दिन, मजाल है किसी की जो हमारी मम्मीजी के सामने 5 मिनट भी नजरें उठा कर बातें कर ले.

हमारी दादीसास अपने बच्चों को भुला कर अपने पोतेपोतियों में व्यस्त हो गईं. कहते हैं न कि सूद से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है. उन के सभी बच्चे अपने हर छोटेछोटे काम के लिए अपनी भाभी यानी हमारी मम्मीजी पर आश्रित हो गए.

समय बीता, सब का अपनाअपना घर बस गया. मैं बड़ी बहू बन कर इस घर में आ गई और मेरे पीछेपीछे मेरी 2 देवरानियां भी आ गईं. ननदें ब्याह कर अपनेअपने घर चली गईं. दादीजी की जबान से मम्मीजी की बहुत सी वीरगाथाएं सुनी थीं, परंतु लाख चाह कर भी मैं वह स्थान न ले पाई, जो मम्मीजी ने बरसों पहले ले लिया था.

वे थी हीं कुछ हिटलर टाइप की. अपनी सत्ता छोड़ने को तैयार ही नहीं, इसलिए मैं ने भी उन की सीट हथियाने का विचार छोड़ कर दादी के लाड़लों की लिस्ट में शामिल होने का मन बना लिया था.

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