‘‘सुनिए, इस बार दशहरे की छुट्टियां 4-5 दिन की हो रही हैं,’’ नीला ने चाय का कप पकड़ाते हुए बड़ी शोखी से कहा.

‘‘तो क्या?’’ रणवीर तल्खी से बोला.

‘‘दशहरा में मुझे झांसी जाना है,’’ नीला बोली.

‘‘फिर तो मम्मी से पूछ लो न,’’ रणवीर लापरवाही से बोला.

‘‘पूछना है तो तुम्हीं पूछो, मुझे उलटेसीधे बहाने नहीं सुनने हैं,’’ झुंझलाते हुए नीला बोली.

रणवीर जानता है कि सासबहू की पटती नहीं है. दोनों को एकदूसरे के विचार पसंद नहीं हैं. नीला बहुत तेज स्वभाव वाली है. उसे अपने कामों में किसी की दखलंदाजी पसंद नहीं है. यदि किसी ने जरा सा भी किसी बात के लिए टोका तो वह बड़ाछोटा नहीं देखती और ऐसीऐसी बातें सुनाती है कि फिर बोलने वाला आगे बोलने की हिम्मत न करे. उस के दिमाग में यह बात अच्छी तरह बैठी है कि ससुराल में सब को दबा कर रखो. सासससुर का वह बिलकुल लिहाज नहीं करती. मामूली सी बात पर भी खूब खरीखोटी सुना देती है. इसीलिए सब उस से थोड़ा अलग रहते हैं और इसी वजह से घर का वातावरण बड़ा बोझिल हो चला है, क्योंकि यहां न अनुशासन है और न बड़ों का आदरसम्मान.

‘‘ठीक है, मैं ही पूछ लेता हूं,’’ रणवीर ने रुख बदल कर कहा. फिर बोला, ‘‘चलो, अब की बार मैं भी वहीं अपनी छुट्टियां बिताऊंगा.’’

नीला कुछ चकित सी हुई, ‘‘क्यों, अब की बार क्या बात है? हर बार तो मुझे पहुंचा कर चले आते थे.’’

‘‘बस मन हो गया. फोन कर दो कि दामादजी भी इस बार वहीं दशहरा मनाने की सोच रहे हैं.’’

‘‘नहीं नहीं, तुम मुझे पहुंचा कर चले आना. नहीं तो तुम्हारी मां मुझे ताना देंगी.’’

‘‘अब छोड़ो भी, मैं भी चल रहा हूं, बस,’’ गंभीर स्वर में रणवीर बोला.

रणवीर के वहीं छुट्टी बिताने की बात सुन जैसे कि आशा थी, मां खुश नहीं हुईं. उन्हें बिना मतलब ससुराल में रहना पसंद नहीं था. उन्होंने समझाने की कोशिश की पर रणवीर अड़ा रहा, बोला, ‘‘मां, तुम चिंता न करो, सब ठीक रहेगा.’’

नीला जब भी मायके से लौट कर आती थी, तकरार के नएनए नुसखे सीख कर आती थी. यह बात रणवीर भी जानता था और मां भी. इसीलिए नीला के मायके जाने को ले कर मां हमेशा अप्रसन्नता जताती थीं.

रणवीर के आने की खबर मिलते ही ससुराल में सभी स्वागतसत्कार के लिए तत्पर हो उठे. टैक्सी दरवाजे पर रुकी तो छोटा साला अरविंद, जो बाहर क्रिकेट खेलने जाने के लिए किसी साथी का इंतजार कर रहा था, लपक कर आया और सभी को नमस्ते कर सामान उठा कर अंदर ले गया. सास रसोईघर में कुछ बनाने में व्यस्त थीं और ससुरजी कुरसी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे.

ससुरजी को नमस्ते कर उन का आशीर्वाद ले कर रणवीर रसोईघर में चला गया और अपनी सासूमां को नमस्कार कर बोला, ‘‘अरे, क्या बना रही हैं, मांजी, बड़ी अच्छी सुगंध आ रही है. आप के बनाए नाश्ते का मजा ही कुछ और है.’’

सासूमां अपनी प्रशंसा सुन कर मुसकरा दीं. बोलीं, ‘‘बैठो बेटा, मैं अभी नाश्ता ले कर आती हूं.’’

रणवीर ससुरजी के पास बैठ गया. थोड़ी देर में नाश्ता आ गया. चाय पीते हुए वह सब का हालचाल पूछता रहा. फिर वह अपना बैग उठा लाया और उस में से कुरतापाजामा का एक सैट जोकि चिकन का था, निकाल कर ससुरजी को दिखाया और बोला, ‘‘बताइए पापा, यह सैट कैसा है?’’

ससुरजी ने हाथ में ले कर कहा, ‘‘बढि़या है. इस की कढ़ाई, डिजाइन सोबर और महीन है.’’

‘‘यह आप के लिए है,’’ रणवीर ने हंस कर कहा, ‘‘इस बार लखनऊ गया था, तो 2 सैट लाया था, एक आप के लिए और एक पिताजी के लिए.’’

‘‘अरे भाई, मेरे लिए तुम्हें लाने की क्या जरूरत थी,’’ और पत्नी शारदा की तरफ मुखातिब होते हुए बोले, ‘‘देखो, रणवीर मेरे लिए क्या लाए हैं.’’

सासूमां चहक कर बोलीं, ‘‘इस का रंग और डिजाइन तो बहुत अच्छा है. क्या दाम है?’’

‘‘अब आप दाम वाम की बात मत करिए. मुझे अच्छा लगा तो मैं ने ले लिया, बस.’’

फिर रणवीर ने बैग से चिकन की एक साड़ी निकालते हुए कहा, ‘‘यह आप के लिए.’’

सासूमां पुलकित हो उठीं, ‘‘अरे बेटा, इतना खर्च करने की क्यों तकलीफ की.’’

‘‘मम्मीजी, फिर वही बात. मैं भी तो आप का बेटा ही हूं.’’

‘‘अरे बेटा, यह बात नहीं. तुम्हारे व्यवहार और विचार से हम वैसे ही प्रसन्न हैं.’’

रणवीर ने सालेसालियों को भी कुछ न कुछ दिया.

नीला यह सब चकित सी देख रही थी. उस से रहा न गया. जैसे ही एकांत मिला, उस ने रूठे अंदाज में रणवीर से कहा, ‘‘तुम ने यह सब कब खरीदा? मुझे बताया नहीं.’’

‘‘कोई जरूरी नहीं कि सब कुछ तुम्हें बताया ही जाए.’’

नीला मुंह बना कर चुप हो गई.

रणवीर ने खाना खाते समय खाने की खूब तारीफ की. बीचबीच में हंसी की फुलझडि़यां भी छोड़ रहा था वह. सभी लोग बड़े खुश लग रहे थे.

खाना खाने के बाद रणवीर साले व सालियों के साथ गपशप करने लगा और नीला मां के पास बैठ गई.

रणवीर ने अरविंद को पास बुला कर बैठा लिया और उस की पढ़ाई आदि के बारे में काफी दिलचस्पी दिखाई.

‘‘बातें तो बहुत हो गईं

अब ये बताओ तुम लोग कभी पिकनिक के लिए जाते हो?’’ रणवीर ने अरविंद से मुसकरा कर पूछा.

‘‘हम 1-2 बार कालेज से ही गए हैं, पर वैसा मजा नहीं आया, जो अपने परिवार के साथ आता है,’’ अरविंद और रिंकी मुंह बनाते हुए बोले.

‘‘ठीक है, कल पिकनिक का प्रोग्राम रहेगा,’’ रणवीर बड़े दोस्ताने ढंग से बोला.

अरविंद व रिंकी को जैसे मुंहमांगी मुराद मिल गई. उन्होंने सारी प्लानिंग झटपट कर डाली. दामाद के इस मिलनसार व्यवहार से पूरा घर बहुत खुश था.

दूसरे दिन किराए की टैक्सी कर ली गई. सभी लोग बैठ कर चल दिए. शहर से बाहर एक झील थी और पास में ही अमराई थी. नीला ने मां के साथ मिल कर पूरियां आदि बना ली थीं. रणवीर पास की दुकान से कुछ मीठा ले आया.

पिकनिक में बड़ा आनंद आया. बच्चों ने खूब खेलकूद किया. खानेपीने के बाद सब ने खूब चुटकुले सुनाए. सभी हंसहंस कर लोटपोट हो रहे थे.

ऐसे ही मौजमस्ती करते छुट्टी के 4-5 दिन कैसे बीत गए, कुछ पता ही नहीं चला. रणवीर घर लौटने का मन बना रहा था. उस दिन शाम को सभी चाय पी रहे थे, तभी रणवीर ने टेप रिकौर्डर निकाला और सब से बोला, ‘‘आप लो यह आवाज पहचानिए तो जरा किस की है?’’

टेप चालू हो गया, सभी लोग ध्यान से सुनने लगे.

अचानक अरविंद चिल्लाया, ‘‘अरे यह तो नीला दीदी की आवाज है. दीदी, तुम किस से डांटडांट कर बोल रही हो? अरे हां, दूसरी आवाज तो तुम्हारी सासूमां की लग रही है. वे धीरेधीरे कुछ कह रही हैं.’’

रिंकी बोली, ‘‘क्यों दीदी, ससुराल में तुम ऐसे ही बोलती हो? यहां हम लोगों से तो तुम कुछ और ही बताया करती हो.’’

नीला के मम्मीपापा हतप्रभ हो नीला का मुंह ताकने लगे. रणवीर मंदमंद मुसकरा रहा था.

रणवीर ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘आप की बेटी छोटीछोटी बातों को सुन कर चिल्लाना शुरू कर देती है और सब पर दोष लगाया करती है. ऐसी बात नहीं कि मैं कुछ कहता या समझाता नहीं पर यह माने तब न. इस के दिमाग में यह है कि ससुराल में सब को दबा कर रखना चाहिए.

‘‘मैं तो आए दिन की चिकचिक से परेशान हो गया. फिर मैं ने सोचा आप लोग ऐसे तो समझेंगे नहीं, इसलिए मैं ने यह उपाय अपनाया. अब आप लोग जो समझें…’’

तभी ससुर बोले, ‘‘बेटा, हम इतना नहीं जानते थे. यह तेज तो है, लेकिन यह तो हद हो गई. छोटेबड़े का लिहाज करना ही छोड़ दिया. बेटा, हम बड़े शर्मिंदा हैं.’’

सासूमां ने नीला को डांटा और समझाया. नीला को रणवीर पर रहरह कर क्रोध आ रहा था. मायके आ कर नीला सासससुर की खूब बुराई करती थी. सासूमां ऐसे चिल्लाती हैं, ऐसे बोलती हैं, वगैरहवगैरह. आज पोल खुल गई. वह कुछ शर्मिंदा व क्रोधित भी थी. सासूमां ने रणवीर से माफी मांगी. अकेले में नीला को बड़ी हिदायतें दीं और समझाया. नीला बस रोती रही.

रास्ते भर नीला रणवीर से बोली नहीं. जब वे घर पहुंचे तो मां का मूड कुछ उखड़ा उखड़ा सा था. वे कुछ कहने वाली ही थीं कि नीला ने झुक कर पैर छुए और हालचाल पूछा. सास का मुंह खुला का खुला रह गया. तभी उन्हें ध्यान आया, तो उन्होंने आशीर्वाद दिया. नीला ने ससुर के भी पैर छुए उन्होंने भी आशीर्वाद दिया. जब सास किचन में जाने लगीं तो नीला ने रोक कर कहा, ‘‘आप बैठिए चाय मैं बनाती हूं.’’

स्वर में मिठास व अपनापन था. सास ने अविश्वास से बहू को देखा फिर रणवीर की ओर देखा. वह मंदमंद मुसकरा रहा था. नीला अभी भी मुंह फुलाए थी. बात नहीं कर रही थी, बस अपना काम यंत्रवत करती जा रही थी.

रणवीर बैडरूम में जा कर कपड़े बदल रहा था, तभी नीला ने चाय का प्याला मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘यह चाय रखी है.’’

वह जाने के लिए मुड़ी ही थी कि रणवीर ने हाथ पकड़ लिया और बोला, ‘‘तुम भी बैठो, अपनी चाय यहीं ले आओ.’’

‘‘नहीं, मुझे नहीं बैठना है,’’ नीला गुस्से में बोली.

परंतु रणवीर ने जाने नहीं दिया. उसे पास में बैठा लिया. फिर बोला, ‘‘तुम्हारी नाराजगी उचित नहीं. मैं तुम्हें समझाता था मगर तुम मानती नहीं थीं. ऐसे में घर की सुखशांति के लिए कोई उपाय तो करना ही था. मेरे मां पिता ने बहुत संघर्ष किया है. आज जब मैं हर तरह से समर्थ हूं, मेरा फर्ज है सब तरह से उन्हें सुखी रखना. उन को दुखी व अपमानित होते देखना मुझे सहन नहीं होता. जरा सा मीठा बोलो, अच्छा व्यवहार करो तो मां कितनी गद्गद हो जाती हैं. यदि वे अपनी तरह से कुछ चाहती हैं तो कर देने में कौन सी मेहनत करनी पड़ती है,’’ रणवीर ने नीला को समझाते हुए कहा.

नीला कुछ सोचती रही, फिर धीरेधीरे सकुचाते हुए बोली, ‘‘मुझे माफ कर दो रणवीर. आज के बाद मैं कभी तुम्हें शिकायत का मौका नहीं दूंगी.’’

‘‘वैरी गुड,’’ रणवीर ने शरारती अंदाज में कहा, ‘‘अब अपनी चाय ले कर यहीं आओ, हम साथ में चाय पिएंगे.’’

‘‘नहीं, हम चाय सब के साथ पिएंगे, चाय ले कर तुम बाहर आओ,’’ नीला ने भी उसी शरारती अंदाज में नकल उतारते हुए मुसकरा कर कहा और पलट कर बाहर चली गई. रणवीर मन ही मन मुसकराया, उपाय काम कर गया.

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