कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

मैं ने मम्मी की ओर देखते हुए कहा, ‘‘क्या बुराई है इस में यदि कोई दंपती बच्चा पैदा करने में असक्षम हो और इस में दूसरे की मदद ले?’’ मम्मी ने भी मुझे करारा जवाब देते हुए कहा, ‘‘पर उस बच्चे की रगों में खून तो उस मां का ही दौड़ रहा है न जो कोख किराए पर देती है?’’

मैं समझ गई थी कि मम्मी से इस वक्त बहस करना ठीक नहीं. सो मैं ने कहा, ‘‘हां मम्मी, आप बात तो ठीक ही कह रही हैं.’’

वे धीरेधीरे बुदबुदाने लगीं, ‘‘हर इनसान अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकता है... न कोई समाज न ही कोई संस्कार... आने वाली पीढ़ी तो और भी न जाने क्या करेगी? अगर मातापिता ही ऐसे हैं तो...’’

मैं जानती थी कि मम्मी से इस विषय पर और बात करना उचित नहीं. लेकिन मेरे बच्चों को उन की बात बड़ी ही दकियानूसी लगतीं.

मेरी बेटी अकसर कहती, ‘‘मौम, दादी ऐसी बात क्यों करती हैं. यदि सब लोग अपने हिसाब से रहते हैं तो इस में क्या बुराई है?’’

मैं कहती, ‘‘बुराई तो कुछ नहीं पर मम्मी अभी यहां नईनई आई हैं न इसलिए उन्हें यह सब अजीब लगता है.’’

ये भी पढ़ें- गलतफहमी : शिखा अपने भाई के लिए रितु को दोषी क्यों मानती थी

ऐसा चलते कब 3 साल बीत गए पता ही न चला. मम्मी भी आशी दीदी से मिलने मुंबई जाना चाहती थीं. बच्चों की भी छुट्टियां थीं तो मैं ने बच्चों के भी टिकट ले लिए. हां, पापा नहीं जाना चाहते थे. उन के दोस्तों का यहां कुछ प्रोग्राम था.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...