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लेखिका- दिव्या विजय

तभी अचानक एक बाइक हौर्न देते हुए कार की बगल से गुजर गई. वह कुछ सोच पाती उस से पहले ही बाइक पलट कर वापस आई. टैक्सी के पास आ कर धीमी हुई और फिर बाइक सवार फिकरा कस कर तेजी से आगे बढ़ गए. ड्राइवर ने एक क्षण उसे देखा और कांच चढ़ा दिया.

‘‘मैडम, अभी देखा न आप ने?’’ ड्राइवर ने सफाई देते हुए कहा.

अनन्या ने कुछ नहीं कहा पर अंदर से वह डर गई थी. अभी यहां उतरना किसी भी तरह सुरक्षित नहीं है. उस ने अपना पर्स टटोला. एक नेलकटर जिस में छोटा सा चाकू भी था उसे नजर आया. उस ने चाकू को बाहर निकाल कर नेलकटर अपनी हथेली में भींच लिया.

आमनासामना करने की नौबत आ गई तो इस चाकू की बदौलत कुछ मिनट तो मिलेंगे उसे संभलने को. कोई हथियार छोटा या बड़ा नहीं होता. असल बात है कि जरूरत के वक्त कितनी अक्लमंदी से उस का इस्तेमाल होता है. वह खुद को हिम्मत बंधा रही थी.

अचानक टैक्सी की रफ्तार कम हुई, तो अनन्या के मन में हजारों डर तैर गए कि क्या हुआ अगर इस के यारदोस्त अंधेरे से निकल

कर गाड़ी में आ बैठे या उसी को दबोच कर

कहीं ले गए? कहीं बाइक सवार भी तो मिले

हुए नहीं? अखबार में रोज छपने वाली खबरें

उसे 1-1 कर याद आने लगीं. किसी में टैक्सी वाला सुनसान रास्ते पर ले गया तो किसी में चलती गाड़ी में ही...

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उस का अकेले आना ही गलती थी. नहीं आना चाहिए था उसे अकेले. उस के पढ़लिख जाने से लोगों की सोच तो नहीं बदल सकती. लोग जिस सोच के गुलाम हैं उस का खमियाजा आज तक औरतों को ही भुगतना पड़ रहा है. उस ने अपने पर्स में रखा पैपर स्प्रे टटोला. पिछले साल और्डर किया था. तब से हमेशा साथ रखती है पर इस्तेमाल करने की नौबत अभी तक नहीं आई थी लेकिन आज जरा भी कुछ अजीब लगा तो वह इस के इस्तेमाल से हिचकेगी नहीं. सोचते हुए वह एक हाथ में पैपर स्प्रे दूसरे हाथ में नेलकटर थामे रही. उस ने तय किया अगली बार अकेले सफर करते हुए एक बड़ा चाकू साथ रखेगी. टैक्सी अब और धीरे चल रही थी.

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