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5 वर्षों से जिस व्यक्ति से फेसबुक पर संपर्क है, वह किसी सरकारी विभाग के जिम्मेदार अधिकारी के रूप में कार्य कर रहा है. और पगपग पर उस का सहयोग कर रहा है, उस का शिष्टाचारवश भी अतिथि को ठहराने का दायित्व तो बनता ही है.

इसी बात पर आज सवेरे नकुल भड़क गया था. कहा था कि फेसबुकिया मित्र के यहां कहां ठहरोगी. मैत्री इतना तो समझती है कि सामान्य शिष्टाचार और आग्रह में अंतर होता है. सो, उस ने यही कहा था कि यह एक मित्र का आत्मीय आग्रह भी हो सकता है.

मैत्री खुद समझदार है, इतना तो जानती है कि महानगर कल्चर में किसी के घर रुक कर उस को परेशानी में डालना ठीक नहीं होता.

मैत्री का मन नकुल की छोटी सोच तथा स्त्रियों के प्रति जो धारणा उस ने प्रकट की, उस को ले कर खट्टा हुआ था. अपने ठहरने के विषय में तो विनम्रतापूर्वक उमंग को मना कर ही चुकी थी. बिना पूरी बात सुने नकुल का भड़कना तथा उमंग के लिए गलत धारणा बना लेना उसे सही नहीं लगता था.

रेलगाड़ी आखिरकार गंतव्य स्टेशन पर पहुंच कर रुक गई और मैत्री की विचारशृंखला टूटी. वह टैक्सी कर स्टेशन से सीधे पति नकुल के बताए गैस्टहाउस में जा ठहरी.

पोलो विक्ट्री के नजदीकी गैस्टहाउस में नहाधो कर, तैयार हो कर मैत्री अब उमंग के कार्यालय में पहुंच गई. आगे के निमंत्रण इत्यादि उमंग खुद साथ रह कर मंत्रीजी तथा निदेशक महोदय आदि को दिलवाएंगे.

प्रधान कार्यालय के एक कक्ष के बाहर तख्ती लगी थी, उपनिदेशक, उमंग कुमार. कक्ष के भीतर प्रवेश करते ही हतप्रभ होने की बारी मैत्री की थी. यू के खुद दोनों पांवों से विकलांग हैं तथा दोनों बैसाखियां उन की घूमती हुई कुरसी के पास पड़ी हैं.

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