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लंच ब्रेक में ऋचा का फोन आया.‘‘हां भई, छुट्टी के लिए आवेदन कर दिया है केरल जाने को,’’ शिखा ने उसे सब बताया.

‘‘लेकिन घर वालों के लिए आप छुट्टी पर नहीं टूर पर जा रही हैं दीदी, वरना सभी आप के साथ केरल घूमने चल पड़ेंगे,’’ ऋचा ने आगाह किया.

ऋचा का कहना ठीक था. सब तैयारी हो जाने से एक रोज पहले उस ने सब को बताया कि वह केरल जा रही है.

‘‘केरल घूमने तो हम सब भी चलेंगे,’’ शशि ने कहा.

‘‘मैं केरल प्लेन से जा रही हूं सरकारी गाड़ी से नहीं, जिस में बैठ कर तुम सब मेरे साथ टूर पर चल पड़ते हो.’’

‘‘हम क्या प्लेन में नहीं बैठ सकते?’’ यश ने पूछा.

‘‘जरूर बैठ सकते हो मगर टिकट ले कर और फिलहाल मेरा तो कल सुबह 9 बजे का टिकट कट चुका है,’’ कह कर शिखा अपने कमरे में चली गई.

अगली सुबह सब के सामने ड्राइवर को कुछ फाइलें पकड़ाते हुए उस ने कहा, ‘‘मुझे एअरपोर्ट छोड़ कर, मेहरा साहब के घर चले जाना, ये 2 फाइलें उन्हें दे देना और ये 2 आफिस में माधवी मेनन को.’’

प्लेन में अपनी बराबर की सीट पर बैठी युवती से यह सुन कर कि वह एक प्रकाशन संस्थान में काम करती है और एक लेखक के पास एक किताब की प्रस्तावना पर विचारविमर्श करने जा रही है, शिखा ने आश्चर्य से पूछा, ‘‘अपने यहां लेखकों को कब से इतना सम्मान मिलने लगा?’’

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‘‘मैडम, आप शायद नहीं जानतीं,’’ युवती खिसिया कर बोली, ‘‘बेस्ट सेलर के लेखक के लिए कुछ भी करना पड़ता है. ये महानुभाव केरल से बाहर आने को तैयार नहीं होते, सो बात करने के लिए हमें ही यहां आना पड़ता है.’’

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