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बंगले में प्रवेश करते वक्त रिद्धी बिलकुल निश्चिंत थी कि अभी यहां सिर्फ मिथिलेश ही उसे मिलेगा. मिथिलेश अपने बैडरूम में लैपटौप पर औफिस का काम रहा था. उस की पीठ दरवाजे की तरफ थी. रिद्धी ने मिथिलेश की पीठ पर धीरे से एक चपत लगाई.

मिथिलेश चौंक गया. फिर तुरंत संभलते हुए बोला, ‘‘ओह. साली साहिबा आप?’’

‘‘क्यों जीजू आप क्या दीदी का इंतजार कर रहे थे? वह तो अभीअभी क्लीनिक गई होगी.’’

‘‘अरे नहींनहीं, मैं तो तुम्हें ही याद कर रहा था.’’

‘‘ऐसा है तो एक अच्छी सी सैल्फी लेती हूं... आप की शादी के 5 साल हो गए, इकलौती साली के साथ आप की एक भी सैल्फी नहीं,’’ रिद्धी ने शिकायत की.

‘‘कैसे हो सैल्फी? तुम तो इन 5 सालों में दुधमुंही बच्ची थी. कहां फटकती थी मेरे पास,’’ मिथिलेश नजदीकी बढ़ाते हुए रिद्धी की आंखों में देखने लगा.

रिद्धी के शरीर में धीरेधीरे चूहल दौड़ने लगी. वह जीजू के साथ लिपट कर  इस तरह सैल्फी खींचने लगी कि मिथिलेश की सांसें उखड़ गईं. रिद्धी के मन की पोटली मिथिलेश के सामने छितर गई थी. सैल्फी के बाद चुप्पी के शुन्य को भरते हुए वह बोल पड़ी, ‘‘देखो जीजू, सैल्फी में भी हम एकदूसरे के साथ कितने अच्छे लग रहे हैं.’’

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मिथिलेश लैपटौप को छोड़ अपने बिस्तर पर आ गया और फिर एक झटके में रिद्धी को अपनी बांहों में भर लिया.

‘‘जीजू दीदी को पता चला तो?’’

‘‘महीनेभर से तुम्हारे दिल का हाल मैं साफ पढ़ रहा हूं, अब भूल जाओ दीदी को. घरवाली को वश में रखना मुझे बखूबी आता है.’’

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