कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

अलका ने सुबहसुबह नाश्ता तैयार किया और जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. समीर ने टोका," क्या बात है आज कहीं जाना है क्या?"

"हां, स्वामी जी के पास जाना है. आप भूल गए क्या? आज उन्होंने मुझे बुलाया था न, पुत्रप्राप्ति के लिए किसी अनुष्ठान की शुरुआत करनी थी."

"हां याद आया. पिछले महीने जब हम दोनों गए थे तभी तो उन्होंने बताया था कि फरवरी महीने की चतुर्दशी को एक अनुष्ठान की शुरुआत करनी है. चलो ठीक है. तुम आज जा कर उन से मिलो. ऑफिस से जल्दी छुट्टी ले कर शाम तक मैं भी आ जाऊँगा," समीर ने कहा.

"हां जी ठीक है. फिर आप मुझे लेने आ जाना. मैं ने आटा जमा दिया है. सब्जी भी बन गई है. बस मांजी फुलके बना लेंगी. नन्ही और छोटी तो अभी सो रही हैं, " अलका ने सास की तरफ देखते हुए कहा.

"कोई नहीं बहू तू निश्चिंत हो कर जा. मैं दोनों बच्चियों को संभाल लूंगी. बस स्वामी जी तेरी मनोकामना पूरी कर दें और कुछ नहीं चाहिए," पास में बैठी सासू मां ने उसे आश्वस्त किया.

ये भी पढ़ें- एहसास: कौनसी बात ने झकझोर दिया सविता का अस्तित्व

अलका ने आज नीले रंग की साड़ी पहनी थी. स्वामी जी ने कहा था कि उसे मंगल, शुक्र और शनिवार को नीला रंग ही पहनना चाहिए. अलका निकलने लगी कि तभी छोटी जाग गई और रोने लगी. अलका ने उसे किसी तरह चुप कराया. मुंह में दूध की बोतल दे कर मांजी के पास बिठा दिया. वैसे तो छोटी 3 साल की हो चुकी थी पर सो कर उठते ही सब से पहले उसे दूध की बोतल चाहिए होती थी. नन्ही भी सातवें साल में लग चुकी थी. क्लास 2 में पढ़ने भी जाती थी.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...