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‘‘तुम इजाजत दो तो मैं आज उस की खबर लूं घर पहुंच कर?’’ पारिजात क्रोध से उबल रहा था.

‘‘नहीं, कहीं ऐसा न हो कि फिर आप से बात करने पर भी अंकुश लग जाए.’’

‘‘ऐसा कैसे कर सकता है वह? उस की ही चलेगी क्या? तुम सोचसमझा कर बता देना कि मैं कब और कैसे समझाऊं उसे? यों अपने को मार कर कब तक जीती रहोगी? घुटघुट कर मर जाओगी एक दिन.’’

मिहिका फूटफूट कर रो पड़ी. रुंधे गले से बोली, ‘‘मुझे न जाने कितनी खुशियां मिल जाने की आशा थी इस रिश्ते से, कितने कुंआरे शौक पूरा करना चाहती थी शादी के बाद, खास महसूस करना और करवाना चाहती थी अचल को...लेकिन मिला क्या? निराशा, अपमान और कभी दूर न होने वाली रिक्तता.’’

‘‘आज कहीं रुक कर कौफी पीएंगे. यह मत कहना कि टाइम से घर न पहुंची तो अचल झागड़ने लगेगा. पहुंचने पर कुछ कहे तो मुझे फोन कर देना, डरना नहीं अब. मैं हूं ना.’’

मिहिका का चेहरा एक बच्चे सा खिल उठा. कौफी पीते हुए एक सुखद शांति दोनों के बीच तैरती रही, एक सुहाना एहसास दोनों को सहलाता रहा कि रिश्तों से परे वे एकदूसरे से जुड़ रहे हैं.

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कुछ देर बाद रात वाली घटना से उद्विग्न पारिजात बोल उठा, ‘‘बिना किसी रिश्ते के प्रेम करते हुए 2 लोगों का शारीरिक संबंध बनाना समाज को स्वीकार्य नहीं, किंतु विवाहित पुरुष चाहे पत्नी से प्रेम करे या उस का तिरस्कार, उसे संबंध बनाने की पूरी अनुमति है. समाज के लिए प्रेम कितना महत्त्वहीन है. मैं हैरान हूं.’’

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