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दीप्ति ने भरे मन से फोन उठाया. उधर से चहकती आवाज आई, ‘‘हाय दीप्ति... मेरी जान... मेरी बीरबल... सौरी यार डेढ़ साल बाद तुझ से कौंटैक्ट करने के लिए.’’

‘‘शुचि कैसी है तू? अब तक कहां थी?’’ प्रश्न तो और भी कई थे पर दीप्ति की आवाज में उत्साह नहीं था.

शुचि यह ताड़ गई. बोली, ‘‘क्या हुआ दीप्ति? इतना लो साउंड क्यों कर रही है? सौरी तो बोल दिया यार... माना कि मेरी गलती है... इतने दिनों बाद जो तुझे फोन कर रही हूं पर क्या बताऊं... पता है मैं ने हर पल तुझे याद किया... तू ने मेरे प्यार से मुझे जो मिलाया. तेरी ही वजह से मेरी मलय से शादी हो सकी. तेरे हल की वजह से मांपापा राजी हुए जो तू ने मोहसिन को मलय बनवाया. इस बार भी तू ने हल ढूंढ़ ही निकाला. यार मलय से शादी के बाद तुरंत उस के साथ विदेश जाना पड़ा. डेढ़ साल का कौंट्रैक्ट था. आननफानन में भागादौड़ी कर वीजा, पासपोर्ट सारे पेपर्स की तैयारी की और चली गई वरना मलय को अकेले जाना पड़ता तो सोच दोनों का क्या हाल होता.

‘‘हड़बड़ी में मेरा मोबाइल भी कहीं स्लिप हो गया. तुझ से आ कर मिलने का टाइम भी नहीं था. कल ही आई हूं. सब से पहले तेरा ही नंबर ढूंढ़ कर निकाला है. सौरी यार. अब माफ भी कर दे... अब तो लौट ही आई हूं. किसी भी दिन आ धमकूंगी. चल बता, घर में सब कैसे हैं? आंटीअंकल, नवल भैया और उज्ज्वल?’’ एक सांस में सब बोलने के बाद दीप्ति ने कोई प्रतिक्रिया न दी तो वह फिर बोली, ‘‘अरे, मैं ही तब से बोले जा रही हूं, तू कुछ नहीं कह रही... क्या हुआ? सब ठीक तो है न?’’ शुचि की आवाज में थोड़ी हैरानीपरेशानी थी.

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