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अकसर बैडरूम और खिड़की के आसपास डस्टिंग करते हुए एक शलवार कमीज पहने लाल बालों वाली एक डैनिश महिला दिखती. हर बार जब वह दिखती, तो सुषमा सोचती अगर इस वक्त कौसर दिखे तो वह उस से यह पूछने में नहीं चूकेगी कि आखिर यह महिला है कौन.

एक दिन कौसर बाहर निकल कर आ भी गई. वह लाल बालों वाली मैडम इस समय भी डस्टिंग में लगी थी. सुषमा ने दुनियाभर की बातें कर डालीं, तब तक डेजी भी आ गई थी. अचानक कौसर बोल उठी, ‘‘वैसे हसबैंड के बजाय आप ने कपड़े कैसे फैलाने शुरू कर दिए?’’

पहले तो सुषमा थोड़ी सहमी, फिर बोली, ‘‘हमारे यहां हर काम बांट कर करते हैं. इस में क्या खराबी है?’’

उस का इतना कहना  था कि डेजी ने फौरन अपना सुर्रा छोड़ दिया, ‘‘हांहां, आप ने हसबैंड का हाथ बंटाया, इस में क्या खराबी हो सकती है?’’ और दोनों औरतें खिलखिला कर हंसने लगीं.

सुषमा को उन का हंसना अच्छा नहीं लगा. उस की नजर एक बार फिर उस लाल बालों वाली महिला पर पड़ी और वह पूछ बैठी, ‘‘आप के कमरे में कौन सफाई कर रही हैं?’’

खिसियाने की अब इन दोनों की बारी थी. किस मुंह से कहतीं, जब ब्याह कर कौसर कोपनहेगन आई थी तो घर में मियां और देवर के अलावा, इन लाल बालों वाली को भी पाया था. डेजी तो चुप रही. अपनी खनकती आवाज में कौसर ने ही जवाब दिया, ‘‘ये तो मेरी आपा हैं.’’

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एक और सबक जो नानी ने सुषमा को सिखाया, वह था कि सुंदर तो तुम हो लेकिन असली सुंदरी वह है जो अंगअंग से सुंदर हो, हर तौर से सुंदर. जो बात बोले, ऐसे जोर दे कर बोले कि सुनने वाले को उस का परम दरजा महसूस हो. नाक उठा कर बोले, जब बोले, ‘मैं लेडी श्रीराम कालेज का माल हूं,’ तो यह लगे कि सामने मिसेज प्रसाद नहीं वरन शंभु नाम के बंदर के साथ खुद लेडी श्रीराम खड़ी हैं.

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