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सुहास बच्चे के पास चला गया. इस समय बच्चा बैठा हुआ किसी खिलौने में उलझा था. सुहास ने मुंह से सीटी बजाई तो बच्चे ने उसे देखा और फिर मुसकरा दिया. सुहास ने सीटी बजाते हुए बच्चे को गोद में उठा लिया. सुहास के होंठों पर हाथ रख कर बच्चा मुंह से आवाजें निकालने लगा. साफ समझ आ रहा था कि सुहास को सीटी बजाने के लिए कह रहा है. सुहास ने सीटी बजाई तो बच्चा खिलखिलाने लगा.

यह मजेदार क्रम शुरू हो गया. जैसे ही सुहास रुकता बच्चा उस से सीटी बजाने के लिए उस के होंठों पर हाथ रख देता. राघव और वहां मौजूद कर्मचारी इस खेल पर हंस रहे थे. थोड़ी देर बाद सुहास ने बच्चे को वहां खड़ी एक महिला को दिया तो बच्चा रोने लगा.

सुहास को उस पर बड़ी ममता उमड़ी. राघव से कहा, ‘‘मैं इसे जल्दी ले जाऊंगा. मुझे तो ऐसा लग रहा है जैसे यह मेरा ही अंश है. अरे हां, मैं इस का नाम अंश ही रखूंगा.’’

राघव मुसकरा दिया. राघव ने वहां से निकलते ही अपने सहयोगी प्रकाश को फोन पर पूरी बात बताई. प्रकाश ने अपने बड़े भाई वकील आलोक का फोन नंबर देते हुए कहा, ‘‘औल द बैस्ट. अंश को संभाल पाओगे?’’

‘‘हां, मैं सब मैनेज कर लूंगा.’’

नितिन सारी बात सुन कर बहुत खुश हुआ. पूछ लिया, ‘‘सुहास, मैं तुम्हारे साथ ही शिफ्ट हो जाऊं? हम सब शेयर करते रहेंगे.’’

‘‘हां, बिलकुल, अपना सामान ले आओ.’’

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वीकैंड तक नितिन अपना सामान ले कर सुहास के पास ही आ गया. आतेजाते अपने फ्लैट के नीचे वाले फ्लैट में रहने वाले दंपती राजीव और सुमन से सुहास की अच्छी जानपहचान हो गई थी. सुहास ने शाम को उन्हीं की डोरबैल  बजा दी. फिर एक अच्छी मेड के बारे में पूछताछ की. बात तय हो गई. सुहास ने उन्हीं के यहां काम करने वाली मंजू को कुछ समय बाद काम पर आने के लिए कह दिया. फिर उस ने आलोक से बात कर के मिलने का समय मांगा. मिलने पर आलोक ने कई कानूनी मशवरे देते हुए उस की इस इच्छा में पूर्णतया सहयोग का वादा किया.

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