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अभिनव के घर से जाते ही अनन्या चुपचाप बैड पर लेट गई. 1 सप्ताह के लिए औफिस के काम से लखनऊ जा रहा था अभिनव पर जाते हुए रोज की तरह बस वही रूखा सा बाय. कितनी याद आई थी उसे अभिनव की जब वह पिछले माह गोवा गया था. अनन्या उस का बेसब्री से इंतजार करते हुए उस के दिल में जगह बनाने के तरीके ढूंढ़ती रहती थी. तभी तो इंटरनैट पर वीडियो देख कर खाने की कुछ चीजें बनानी भी सीख ली थीं.

जिस दिन अभिनव लौटा उस दिन मेड से खाना न बनवा कर अपने हाथों से कोफ्ते और लच्छेदार परांठे बनाए. अभिनव ने खाना खाने के बाद हलके से मुसकरा कर जब थैंक्स बोला तो अनन्या गद्गद हो गई.

इस बार उसे पूरी उम्मीद थी कि अभिनव खूब हिदायतें दे कर जाएगा. जैसेकि इस बार ज्यादा याद मत करना... अपने लिए बढि़या खाना बनवा कर खा लिया करना... रात में देर तक जागती मत रहना वगैरहवगैरह. मगर अभिनव तो हमेशा की तरह सिर्फ बाय बोल टैक्सी में जा बैठा और फिर मुड़ कर भी नहीं देखा. ये सब सोचते हुए अनन्या को नींद आ गई. उस की नींद मोबाइल की रिंग बजने से टूटी.

‘‘अभीअभी लैंड हुई है फ्लाइट,’’ अभिनव का फोन था.

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‘‘ओके... अभी तो कुछ देर लगेगी न एअरपोर्ट से बाहर निकलने में? फिर औफिस के गैस्टहाउस तक पहुंचने में 1 घंटा और लगेगा... आप ने औफिस में इन्फौर्म कर के गाड़ी तो मंगवा ली थी न? रात को टैक्सी से जाना रिस्की होता है... ध्यान रखना अपना,’’ अनन्या हमेश की तरह अभिनव को ले कर चिंतित हुई जा रही थी. वह दूर गए अभिनव से बातचीत का कोई न कोई बहाना तलाशती रहती थी.

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