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‘‘मिस रेखा साने, आप का इस महीने भी टारगेट पूरा नहीं हुआ. सिर्फ 10,000 रुपए की सेल हुई है. आप को और 1 महीने का वक्त दिया जाता है, लेकिन खयाल रहे, यह आप का आखिरी मौका होगा, इस के बाद कंपनी आप के बारे में गंभीरता से सोचेगी.’’

गरदन झुका कर रेखा अपने बौस की फटकार सुनती रही. सभी की निगाहें उस पर टिकी थीं. गरदन नीची होने के बावजूद उसे सभी की नजरों में छिपा उपहास और सहानुभूति के भाव दिखाई दे रहे थे. किसी की नजरों में ईर्ष्या थी, तो किसी की नजरों में इस बात की खुशी थी कि चलो, इसे अच्छा सबक मिल गया.

मीटिंग खत्म हुई और वह धम्म से अपनी सीट पर आ बैठी. उस की उठने की इच्छा नहीं हो रही थी. अगले महीने 50,000 रुपए की बिक्री करने की चिंता उसे खाए जा रही थी. 50,000 की सेल? नामुमकिन है यानी वेतनवृद्धि नहीं या फिर नागपुर, चंद्रपुर जैसे इलाके में बदली. इस से अब छुटकारा नहीं है. अगर हमेशा ऐसी ही परफारमेंस रही तो शायद नौकरी से भी हाथ धोना पड़ सकता है. कंपनी को भला उस की समस्याओं से क्या मतलब है? उन्हें तो सिर्फ अपनी सेल बढ़ाने की और रुपए कमाने की चिंता लगी रहती है. लाखों बेरोजगार इस नौकरी के चक्कर में होंगे, मेरे जाने पर कोई दूसरा आ जाएगा. वैसे भी जोन के अफसर नाडकर्णी अपनी साली को यह नौकरी दिलाने के चक्कर में हैं. यानी अब उसे अपना बोरियाबिस्तर बांध कर रखना होगा.

यह नौकरी रेखा को आसानी से नहीं मिली थी. सैकड़ों चक्कर लगाए, इंटरव्यू दिए, रिटन टेस्ट दिए, साथ ही घर वालों की नाराजगी भी मोल ली. एक लड़की का मैडिकल रिप्रेजेंटेटिव की नौकरी करना कोई आसान बात नहीं थी. मेहनत, परेशानी, धूप में दिन भर घूमना, तरहतरह के लोगों से मिलना आदि सभी मुश्किलों का उसे सामना करना था. भाई ने उसे समझाने की काफी कोशिश की, उसे आने वाली मुसीबतों से आगाह किया, पिताजी ने भी अपनी ओर से उसे समझाने की कोशिश की, मगर उन के हर सवाल का उस के पास जवाब था. और क्यों न हो, आखिर रेखा एक आकर्षक व्यक्तित्व की, बुद्धिमान और मेहनती युवती

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