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धारावाहिक कहानी

उसका सच: क्यों दोस्त को नहीं समझ पाया हरि

मुझे अफसोस हो रहा था कि दो टुकड़ों में बंटा मेरा दोस्त मोमबत्ती की तरह पिघलपिघल कर अंधेरों में विलीन हो गया और मैं खुद को धिक्कारने के सिवा उस के लिए कुछ न कर पाया.

  • Digital Team
  • ,
  • Jul 17, 2021
uska sach 1
भाग - 1

एक दिन मैं ने उस के यहां अचानक जा धमकने की सोची. घंटी बजाई, दरवाजा पूरा खोलने से पहले ही उस ने दरवाजा मेरे मुंह पर दे मारा.

uska sach 2
भाग - 2

‘मैं एक बार फिर चुप्पी साध लेता हूं. फिर कभी पास आ कर बैठ जाती है.

uska sach 3
भाग - 3

‘धर्मवीर, अभी तक मैं यह समझ नहीं पाया कि तुम इतना कुछ अकेले क्यों सहते रहे? एक बार जिक्र तो किया होता?’

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