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पापा मां को चुप रहने को कह रहे थे, पर मां पूरी ताकत लगा कर मुझे दोषी बना रही थीं.

‘‘तुम ने मोनू की मां का नाम ले कर उसे ताना मारा है... शर्म नहीं आती ऐसी बेहूदा बात करते? इतने भी नासमझ नहीं हो जो पता न चले कि क्या कहना है और क्या नहीं.’’

क्षण भर को लगा सब एक तरफ हो गए हैं और मैं अकेला एक तरफ. मैं ने मोनू को ताना मारा उस की मां का नाम ले कर? लेकिन कब? मैं तो उस से बचता रहता हूं, उस के सामने भी नहीं पड़ता, क्योंकि उसी का व्यवहार अशोभनीय होता है.

‘‘तुम ने ऐसा क्यों किया बेटा? तुम तो समझदार हो मुन्ना?’’ दादी ने भी पूछा.

दादाजी भी अदालत सजा कर बैठे नजर आए. आज तक चुप थे, क्योंकि मेरे पेपर थे. आज आखिरी पेपर हुआ और सभी के सब्र का बांध टूट गया. मेरा साल भर से चुप रहना, संयम रखना धरा का धरा रह गया. मेरा अपनी मां की चिंता में रोनाबिलखना सब बेकार हो गया. सभी के चेहरे इस तरह से हो गए मानो मैं ही सब से बड़ा अपराधी हूं. मैं मानसिक रूप से इस आक्रमण के लिए कहां तैयार था. मैं तो आखिरी पेपर दे कर बड़ा हलकाहलका महसूस करता हुआ घर आया था. मुझे क्या पता था एक और इम्तिहान सामने खड़ा होगा.

मैं तनिक चेतता मां ने एक और प्रश्न दाग दिया, ‘‘तुम ने मोनू से ऐसा पूछा कि उस की

मां किस के साथ भागी थी? क्या ऐसा सवाल किया था?’’

हैरान रह गया था मैं. कहां की बात कहां क्या कह कर सुनाई मोनू ने. अपने व्यवहार के बारे में नहीं सोचा. इस से पहले कि मां कुछ और बोलतीं पापा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे मेरे कमरे में ला कर दरवाजा भीतर से बंद कर लिया. देर तक मेरा चेहरा पढ़ते रहे. फिर पूछा, ‘‘मैं जानता हूं सीमा टूटी होगी तभी तुम ने कुछ कहा होगा. क्या बात है बेटा? तुम ने अपनी मां को क्यों छोड़ रखा है? मेरा परिवार बन जाए और तुम अकेले हो जाओ मैं ने ऐसा तो नहीं चाहा था... तुम उस घर में भी नहीं आते?’’

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