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टैक्सी घर के बाहर रुकी तो मानसी ने चैन की सांस ली. घर को बाहर से निहारते हुए अंदर प्रवेश किया. यह घर उसे बहुत अच्छा लगता है. यह घर मानसी के पापा ने कुछ समय पहले ही खरीदा था. यहां बहुत शांति है.

मानसी ने जोर से आवाज दी, ‘‘बिट्टू,

कहां हो?’’

मानसी को विश्वास था बिट्टू किसी कोने से निकल कर अभी उस से लिपट जाएगा.

1 सप्ताह पहले जब मानसी को बैंक की तरफ से 4 दिन की ट्रेनिंग के लिए दिल्ली जाना था तो बिट्टू ने रोरो कर घर सिर पर  उठा लिया और मानसी के मम्मीपापा के लिए उसे संभालना मुश्किल हो गया था. शुरू में तो उस का मन भी नहीं लगा, लेकिन मम्मी ने जब फोन पर बताया कि बिट्टू को कोई अच्छा दोस्त मिल गया है तो वह बहुत खुश हो गईर् कि कम से कम अब वह आराम से रह लेगा क्योंकि घर के आसपास अधिकतर बंगले खाली थे. बिट्टू अकेला बोर हो जाता था.

बिट्टू, पापा, मम्मी, मानसी सब को आवाज देती अंदर आ रही थी कि तभी मम्मी किचन से निकलीं. बोली, ‘‘अरे मानी, तुम कब आई?’’

‘‘बस आ ही रही हूं. बिट्टू कहां है?’’

उस की मम्मी हंसते हुए बताने लगीं, ‘‘पहले दिन तो उस ने खूब हंगामा किया. फिर

उस की दोस्ती साथ वाले बंगले में रहने आए नए परिवार के बेटे से हो गई, बस, आजकल उसी के साथ रहता है. स्कूल भी उसी के साथ जाता है वह भी बिना जिद किए. बहुत खुश रहने लगा है आजकल.’’

मानसी ने चैन की सांस ली.

उस की मम्मी बोलीं, ‘‘तुम फ्रैश हो कर जरा आराम कर लो... खाने में क्या खाओगी?’’

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