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भारत बंगलादेश की सीमा. घने जंगल, ऊंचेऊंचे वृक्ष, कंटीली झाडि़यां, किनारा तोड़ कर नदियों में समाने को आतुर पोखर और ऊंचीनीची पथरीली, गीली धरती. इसी सीमा पर विपरीत परिस्थितियों में अपनीअपनी सीमाओं की रक्षा करते हुए बीएसएफ और बंगलादेश राइफल्स के जवान. सीमा पर बसे लोगों की शक्लसूरत, कदकाठी, रूपरंग और खानपान एक ही था और दोनों तरफ के रहने वालों के एकदूसरे की तरफ दोस्त थे, रिश्तेदार थे और आपसी मेलजोल था.

दोनों ही तरफ के बाशिंदों की एक पैंडिंग मांग थी कि सीमा पर एक हाट हो जहां दोनों ही ओर के छोटेबड़े व्यापारी अपनेअपने माल की खरीदफरोख्त कर सकें. उन का दावा था कि ऐसा हाट बनाने से गैरकानूनी ढंग से चल रही कार्यवाहियां रुक जाएंगी और किसान एवं खरीदारों को सामान की असली कीमत मिलेगी. राजनैतिक स्तर पर वार्त्ताओं के लंबेलंबे कई दौर चले. कई बार लगा कि ऐसा कोई हाट नहीं बन पाएगा और योजना सिर्फ कागजों तक ही सीमित हो कर रह जाएगी. लेकिन अंतत: दोनों सरकारों को जनता की मांग के सामने झुकना ही पड़ा और दोनों सीमाओं के बीच वाले इलाके पर हाट के लिए जगह का चुनाव कर दिया गया. तय यह भी हुआ कि उस जगह पर एक पक्का बाजार बनेगा जहां सीमा के दोनों तरफ के लोग एक छोटी सी प्रक्रिया के बाद आराम से आ जा सकेंगे और जब तक पक्का हाट नहीं बनता तब तक वहीं एक कच्चा बाजार चलता रहेगा.

टैंडर की औपचारिकता के बाद कोलकाता की एक कंपनी ‘शाहिद ऐंड कंपनी’ को काम का ठेका सौंप दिया गया और कंपनी का मालिक शाहिद अपने साथी मिहिर के साथ भारतबंगलादेश सीमा पर तुरुगांव तक पहुंच गया, जहां से बीएसएफ के जवानों की एक टुकड़ी उन्हें वहां ले गई जहां हाटबाजार का निर्माण करना था. जगह देख कर शाहिद और मिहिर दोनों ही चक्कर खा गए.

‘‘क्या बात है बड़े मियां, किस सोच में पड़ गए?’’ शाहिद को यों हैरान देख कर टुकड़ी के कमांडर ने पूछा और फिर उस के मन की बात जान कर खुद ही बोल पड़ा, ‘‘काम मुश्किल जरूर है मगर नामुमकिन नहीं. बस आप को इस उफनती जिंजीराम नदी का ध्यान रखना है और जंगली जानवरों से खुद को बचाना है, जो यदाकदा आप के सामने बिन बुलाए मेहमानों की तरह टपक पड़ेंगे.’’

‘‘मेहमान वे नहीं हम हैं कप्तान साहब. हम उन के इलाके में बिना उन की इजाजत के अपनेआप को उन पर थोप रहे हैं. खैर, वर्क और्डर के मुताबिक यहां 50 दुकानें, एक मीटिंग हौल, एक छोटा सा बैंक काउंटर और एक दफ्तर बनना है,’’  शाहिद ने नक्शे पर नजर गड़ाते हुए कहा.

‘‘बिलकुल ठीक कहा आप ने इंजीनियर साहब. मगर काम शुरू करने से पहले एक जरूरी बात आप को बता दूं,’’ कप्तान मंजीत ने बड़ी संजीदगी से कहा, ‘‘इस इलाके को जहां हम सब खड़े हैं, ‘नो मैन लैंड’ कहते हैं यानी न भारत न बंगलादेश. काफी संवेदनशील जगह है यह. बंगलादेशियों की लाख कोशिशों के बावजूद हम ने यहां उन के गांव बसने नहीं दिए. इसे वैसे ही रखा जैसे अंतर्राष्ट्रीय कानून में उल्लेखित है. इसलिए यहां आप और आप के मजदूर सिर्फ अपने काम से काम रखेंगे और भूल कर भी आगे जाने की कोशिश नहीं करेंगे. बंगलादेशी यों तो हमारे दोस्त हैं, लेकिन कभीकभी दुश्मनों जैसी हरकतें करने से गुरेज नहीं करते हैं. शक ने अभी भी उन के दिमाग से अपना रिश्ता नहीं तोड़ा है. तभी तो इस काम के लिए फौज का महकमा होते हुए भी समझौते के तहत हमें आप जैसे सिविलियंस की सेवाएं लेनी पड़ीं.’’

शाहिद ने अगले दिन से ही अपना काम शुरू कर दिया. लेकिन सप्ताह में 2 दिन काम की गति तब कम हो जाती जब वहां कच्ची दुकानों में दुकानदारों और ग्राहकों का हुजूम इकट्ठा हो जाता. भारतीय दुकानदार जहां कपड़े, मिठाइयां और बांस के बने खिलौने वगैरह बेचते, वहीं बंगलादेशी व्यापारी मछली और अंडे इत्यादि अधिक से अधिक मात्रा मेें ला कर बेचते. लेनदेन दोनों तरफ की करैंसी में होता. शाहिद ने वहीं पास के गांव में एक छोटा सा घर ले लिया और अपने अच्छे व्यवहार से धीरेधीरे लोगों का दिल जीत लिया. घर के कामकाज के लिए उस ने एक बुजुर्ग महिला मानसी की सेवाएं ली थीं. मानसी दाईमां का काम करती थी. मगर उम्र के तकाजे की वजह से उस ने वह काम बंद कर दिया था. मानसी को शाहिद प्यार से मानसी मां कहता.

एक दिन बरसात ने पूरे इलाके को अपनी आगोश में जकड़ लिया. उस वक्त नदी पूरे उफान पर थी और उस का पानी लकड़ी के बने पुल तक पहुंच रहा था. बंगलादेशी व्यापारियों में चिंता बढ़ती जा रही थी. शाहिद की नजरें बेबस लोगों को देख रही थीं कि अचानक उस की नजरें ठिठक गईं. एक लड़की अपने सामान और पैसों को बरसात के पानी और तेज हवा से बचाने का असफल प्रयास कर रही थी. देखते ही देखते हवा का एक तेज झोंका आया, तो लड़की का संतुलन बिगड़ा और उस के हाथ का थैला और सामान की गठरी छिटक के दूर जा गिरी. शाहिद को न जाने क्या सूझा. उस ने पल भर में उफनते पानी में छलांग लगा दी और इत्तफाक से बिना ज्यादा मशक्कत के दोनों ही चीजें हासिल करने में सफल हो गया.

‘‘ये लीजिए अपना सामान,’’ शाहिद ने सामान लड़की को थमाते हुए कहा.

‘‘जी धन्यवाद,’’ लड़की ने कृतज्ञता प्रकट करते हुए कहा. कुछ देर के इंतजार के बाद बरसात का प्रकोप कम हुआ, तो एकएक कर के सभी बंगलादेशी शुक्र मनाते हुए अपनी सीमा की ओर बढ़ने लगे. लड़की जातेजाते कनखियों से शाहिद को देखती जा रही थी. धीरेधीरे लड़की की नाव शाहिद की आंखों से ओझल होने लगी, लेकिन शाहिद एकटक जाती हुई नौका को तब तक निहारता रहा जब तक मिहिर की कर्कश आवाज ने उस की तंद्रा भंग नहीं कर दी.

उस दिन के बाद हर मंगलवार और शुक्रवार को शाहिद अपना सारा कामकाज छोड़ कर हाट में उस लड़की को ढूंढ़ता रहता. एक दिन वह अपना सामान बेचती हुई दिखी तो तुरंत उस के पास पहुंचा. उस ने नजरें उठा कर देखा तो वह तुरंत उस से बोला, ‘‘आज आप सिंदूर नहीं लाईं. मेरी मानसी मां ने मंगवाया था,’’ ऐसा उस ने बातचीत का सिलसिला शुरू करने के उद्देश्य से कहा था.

‘‘हां, लीजिए न,’’ लड़की ने शर्माते हुए कहा.

‘‘ये लीजिए क्व100. कम हों तो बता दीजिए.’’

‘‘मैं आप से पैसे कैसे ले सकती हूं. आप ने उस दिन मेरी कितनी मदद की थी.’’

‘‘अच्छा तो एक शर्त है. मैं खाने का डब्बा लाया हूं. मेरी मानसी मां ने बड़े प्यार से बनाया है. आप को भी थोड़ा खाना होगा.’’

‘‘खाना तो हम भी घर से लाए हैं,’’ लड़की ने हौले से कहा.

‘‘ठीक है. फिर हमारी मां का बनाया खाना आप खाइए और आप का लाया खाना मैं खाऊंगा,’’ शाहिद ने प्रसन्न होते हुए कहा.

‘‘ये क्या कर रही हो रुखसार?’’ एक भारीभरकम आवाज ने दोनों को खाना खाते देख कर टोका, ‘‘किस के साथ मिलजुल रही हो? जानती नहीं यह उस तरफ का है. जल्दी से खाना खत्म कर बाकी बचा माल बेचो. मुझ से इतना माल ढोने की उम्मीद मत करना.’’

‘‘माल तो तुम्हें ही ढोना पड़ेगा जमाल भाईजान. अब मैं तो उठाने से रही.’’ शाम को हूटर बजते ही सभी व्यापारी अपनाअपना माल समेटने लगे और देखते ही देखते सब की गठरियां तैयार हो गईं. रुखसार ने बड़े सलीके से गठरियां बांधीं और अपने भाई की राह देखने लगी. थोड़ी देर में एकएक कर के सभी जाने लगे. लेकिन जमाल का कहीं पता न था. तभी दूर खड़ा शाहिद रुखसार की परेशानी भांपते हुए करीब आया और बोला, ‘‘अगर जमाल नहीं आया तो कोई बात नहीं आप का सामान नाव में मैं रखवा देता हूं, आप परेशान न हों.’’

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