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रात बहुत बीत चुकी थी. अनन्या की आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं था. चंद्रशेखर भी करवटें बदल रहे थे. थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा, ‘अनन्या, तुम कल सुबह फार्म भर कर मुझे दे देना. मैं ने सोच लिया है कि तुम आगे जरूर पढ़ोगी.’

अनन्या को आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई, ‘सच?’

‘हां, मैं परसों पटना जा रहा हूं, तुम्हारा फार्म भी विश्वविद्यालय में जमा करता आऊंगा.’

एक दिन चंद्रेशेखर बैंक से लौटा तो बेहद खुश था. उस ने अनन्या से कहा, ‘आज पटना से मेरे दोस्त रमेश का फोन आया था. बता रहा था कि तुम्हारा नाम प्रवेश पाने वालों की सूची में है. प्रवेश लेने की अंतिम तिथि 25 है. तुम कल से ही सामान बांधना शुरू कर दो. हमें परसों जाना है क्योंकि जल्दी पहुंच कर तुम्हारे लिए होस्टल में रहने की भी व्यवस्था करनी होगी.’

‘मैं होस्टल में रहूंगी?’ अनन्या ने पूछा, ‘घर से दूर...अकेली...क्या यहां कालिज नहीं है?’ उस ने अपने मन की बात कह ही डाली.

‘देखो, विश्वविद्यालय की बात ही अलग होती है. तुम ज्यादा सोचो मत. चलने की तैयारी करो. मैं बाबूजी को बता कर आता हूं,’ कहते हुए चंद्रशेखर बाबूजी के कमरे की ओर चला गया.

पटना आते समय अनन्या ने सासससुर के चरणस्पर्श किए तो सास ने उसे झिड़क कर कहा था, ‘जाओ बहू, बेहद कष्ट में थीं न तुम यहां...अब बाहर की दुनिया देखो और मौज करो.’

चंद्रशेखर के प्रयास से अनन्या को महिला छात्रावास में कमरा मिल गया. उसे वहां छोड़ कर आते वक्त उस ने कहा था, ‘तुम्हारे भीतर की लगन को महसूस कर के ही मैं ने अपने परिवार वालों की इच्छा के खिलाफ यह कदम उठाया है. मैं जानता हूं कि तुम मुझे निराश नहीं करोगी. किसी चीज की जरूरत हो तो फोन कर देना.’

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