कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

लेखक-रमाकांत मिश्र एवं रेखा मिश्र

मैं ध्यान से मामाजी की बातें सुन रहा था. वे जो कुछ बता रहे थे, सचमुच लाजवाब था. कोई आदमी इतना महान हो सकता है, मैं ने कभी सोचा भी नहीं था. लाला हनुमान प्रसाद सचमुच बेजोड़ थे. मामाजी ने बताया था कि लालाजी कभी खोटी चवन्नी भी भीख में नहीं देते थे, लेकिन समाजसेवा में पैसा जरूर खर्च कर देते थे. कितने लोगों को इज्जत से रोजी कमाने लायक बना दिया था और पढ़ाईलिखाई को बढ़ावा देने के लिए कितना पैसा व समय वे खर्च करते थे. लालाजी इन सब बातों का न तो खुद ढिंढोरा पीटते थे और न ही किसी लाभ उठाने वाले को ये बातें बताने की इजाजत देते थे. हालांकि मामाजी लालाजी से उम्र में लगभग 15 साल छोटे थे, लेकिन लालाजी के साथ मामाजी की गहरी दोस्ती थी. पर जिस बात ने लालाजी को मेरी नजर में महान बना दिया था वह कुछ और ही थी.

लालाजी का एक ही बेटा था. 3 साल पहले उस का विवाह हुआ था. उस की एक नन्ही सी बेटी भी थी. पिछले साल आतंकवादियों द्वारा किए गए एक बम विस्फोट में अनायास ही वह मारा गया था. लालाजी इस घटना से टूट से गए थे. लेकिन वे अपने गम को सीने में कहीं गहरे दफन कर मामाजी से यह कहने आए थे कि कहीं लायक लड़का देखें, जिस से वे अपनी विधवा बहू की शादी कर सकें.

मामाजी बता रहे थे कि लालाजी की बहू किसी भी हाल में शादी को तैयार नहीं थी, लेकिन लालाजी का कहना था कि लायक लड़का मिल जाए तो वे बहू को मना लेंगे.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...