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लेखिका- कीर्ति दीक्षित

डाक्टर ने जवाब दे दिया था, ‘‘माधव, हम से जितना बन पड़ा हम कर रहे हैं, लेकिन कृतिकाजी के स्वास्थ्य में कोईर् सुधार नहीं हो रहा है. एक दोस्त होने के नाते मेरी तुम्हें सलाह है कि अब इन्हें घर ले जाओ और इन की सेवा करो, क्योंकि समय नहीं है कृतिकाजी के पास. हमारे हाथ में जितना था हम कर चुके हैं.’’

डा. सुकेतु की बातें सुन कर माधव के पीले पड़े मुख पर बेचैनी छा गई. सबकुछ सुन्न सा समझने न समझने की अवस्था से परे माधव दीवार के सहारे टिक गया. डा. सुकेतु ने माधव के कंधे पर हाथ रख कर तसल्ली देते हुए फिर कहा, ‘‘हिम्मत रखो माधव, मेरी मानो तो अपने सगेसंबंधियों को बुला लो.’’ माधव बिना कुछ कहे बस आईसीयू के दरवाजे को घूरता रहा. कुछ देर बाद माधव को स्थिति का भान हुआ. उस ने अपनी डबडबाई आंखों को पोंछते हुए अपने सभी सगेसंबंधियों को कृतिका की स्थिति के बारे में सूचित कर दिया.

इधर, कृतिका की एकएक सांस हजारहजार बार टूटटूट कर बिखर रही थी. बची धड़कनें कृतिका के हृदय में आखिरी दस्तक दे कर जा रही थीं. पथराई आंखें और पीला पड़ता शरीर कृतिका की अंतिम वेला को धीरेधीरे उस तक सरका रहा था. कृतिका के भाई, भाभी, मौसी सभी परिवारजन रात तक दिल्ली पहुंच गए. कृतिका की हालत देख सभी का बुरा हाल था. माधव को ढाड़स बंधाते हुए कृतिका के भाई कुणाल ने कहा, ‘‘जीजाजी, हिम्मत रखिए, सब ठीक हो जाएगा.’’

तभी कृतिका को देखने डाक्टर विजिट पर आए. कुणाल और माधव भी वेटिंगरूम से कृतिका के आईसीयू वार्ड पहुंच गए. डा. सुकेतु ने कृतिका को देखा और माधव से कहा, ‘‘कोई सुधार नहीं है. स्थिति अब और गंभीर हो चली है, क्या सोचा माधव तुम ने ’’ ‘‘नहींनहीं सुकेतु, मैं एक छोटी सी किरण को भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. तुम्हीं बताओ, मैं कैसे मान लूं कि कृतिका की सांसें खत्म हो रही हैं, वह मर रही है, नहीं वह यहीं रहेगी और उसे तुम्हें ठीक करना ही होगा. यदि तुम से न हो पा रहा हो तो हम दूसरे किसी बड़े अस्पताल में ले जाएंगे, लेकिन यह मत कहो कि कृतिका को घर ले जाओ, हम उसे मरने के लिए नहीं छोड़ सकते.’’

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