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वह गुस्से के कारण तमतमा उठी थी.‘‘एक ओर उस का अपना सपना पूरा होने वाला था, वह स्वतंत्ररूप से कथावाचक बन कर मंच पर बैठ कर कथा सुनाने वाली थी, दूसरी ओर जिन बच्चों के स्वर्णिम भविष्य के जो सपने वह देख रही थी वे सब टूटते दिखाई पड़ रहे थे.

लेकिन अपने मन का दर्द कहे भी तो किस से, इस दुनिया में कोई भी तो ऐसा नहीं था जो उस के मन की पीड़ा बांट सके. वह बिलख उठी थी. उसे अपने चारों तरफ अंधकार ही अंधकार दिखाई पड़ रहा था. वह समझ तो गई कि माताजी ने उस के साथ बदला लेने के लिए रूपा को कहीं गायब किया है.

वह यह भी जान रही थी कि स्वामीजी को भी सबकुछ अवश्य मालूम है. उन्होंने उस के पर काटने के लिए बेटी को अपना हथियार बनाया है. ‘‘स्वामीजी के पैरों पर गिर कर वह घंटों तक सिसकती रही थी, ‘स्वामीजी. मैं आजीवन आप की गुलाम बनी रहूंगी, बस, आप मेरी बेटी रूपा को बुला कर दिखा दीजिए.

बेटे बलराम को यहां से हटा कर होस्टल में पढ़ने के लिए उस का एडमिशन करवा दीजिए.’‘‘वे नाराज हो कर बोले, ‘मैं तो बराबर तुम्हारे साथ था. मुझे स्वयं नहीं मालूम. आप माताजी से पूछिए, वे सब बता देंगी.’ ‘‘जब स्वामीजी ने माताजी को पुलिस का डर दिखाया तो उन्होंने कबूला, ‘रूपा ने मलंग के साथ शादी कर ली है. वह डर के मारे नहीं आ रही है. वह उन के संपर्क में है.’ ‘‘मलंग कथा में कृष्ण का रूप धारण करता था और माताजी का करीबी था.

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