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वंदना और मनोज की शादी करीब 3 महीने पहले हुई थी. इतने कम समय में वह 5वीं बार मायके में रहने आ गई.

पति मनोज को ऐसा करने पर कोई एतराज नहीं था. उसे पता था कि जब वह लौटेगी तो खूब सारा सामान व रुपए साथ लाएगी.

वंदना अपने पिता शैलेंद्रजी और भाई विकास की खास लाडली थी. उस का हालचाल पूछने के बाद शैलेंद्रजी फोन पर कारोबारी बातें करने में व्यस्त हो गए और विकास फैक्टरी का काम देखने चला गया.

अचानक वंदना को ख्याल आया और उस ने अपनी मां कमला से पूछा, ‘‘भाभी कहां है मां?’’

‘‘अपने कमरे में आराम कर रही है,’’ कमला की आवाज में चिंता के भाव उभरे.

‘‘क्यों?’’

‘‘कल रात वह गुसलखाने में फिसल गई थी. आज कमर में तेज दर्द के कारण उस से हिला भी नहीं जा रहा है.’’

‘‘उफ,’’ वंदना ने अजीब सा मुंह बनाया.

‘‘थोड़ी देर बाद तू ही उस के साथ डाक्टर के यहां चली जाना.’’

‘‘सौरी मां. मैं यहां आराम और मौजमस्ती करने आई हूं. मुझे किसी काम के झंझट में मत डालो प्लीज.’’

कमला को अपनी बेटी की यह बात अच्छी नहीं लगी कि वह अपनी कविता भाभी से मिले बिना नहानेधोने के लिए अपने पुराने कमरे में घुस गई.

वंदना नहाधो कर सो गई. जब वह कमरे से बाहर आई तब तक लंच का समय हो गया था.

डाइनिंगटेबल पर होटल से आया खाना सजा था. वंदना इस बात से खुश हुई पर उस के भाई और पिता नाराज हो उठे. उन्हें बाहर का खाना पसंद न था.

‘‘मैं कविता को डाक्टर के यहां ले कर गई थी. फिर घर में खाना कौन बनाता,’’ कमला ने नाराजगीभरे अंदाज में अपनी तरफ से सफाई दी.

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